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कोसी नदी अपडेट - बिहार की प्रस्तावित कोसी-मेची लिंक

  • By
  • Dr Dinesh kumar Mishra
  • August-14-2024
आज (14 अगस्त, 2024) के दैनिक हिन्दुस्तान में मेरे नाम से 'कोसी से मेची तक जुड जायेंगी बारह नदियाँ' शीर्षक से एक लेख छपा है जिसे पढने से ऐसा लगता है इस योजना के क्रियान्वयन के बाद उस दोआब की खेती लहलहा जायेगी, रोजगार में वृद्धि होगी और इलाके की सारी कठिनाइयाँ समाप्त हो जायेंगी, आदि-आदि।
इस सन्देश के साथ मैं अपने आलेख की मूल प्रति संलग्न कर रहा हूँ ताकि समाचार पत्र में छपे इस आधे-अधूरे लेख से जो भ्रान्ति फैल रही है उसे सही दिशा दी जा सके। मूल लेख इस प्रकार है।

बिहार में बहु-चर्चित कोसी-मेची लिंक नहर एकाएक चर्चा में आ गई है क्योंकि वर्षों की प्रतीक्षा के बाद इस वर्ष के बजट में इसके निर्माण की घोषणा हो गई है। केंद्र सरकार ने तो काफी पहले 2004 से ही नदी जोड़ योजना पर गंभीरता पूर्वक विचार करना शुरू कर दिया था पर बिहार सरकार ने इस पर पहल 2006 में की और इस लिंक पर केंद्र से विचार करने के लिये अनुरोध किया। इस लिंक नहर के निर्माण से कोसी-मेची क्षेत्र में कृषि का विकास होगा।

नेशनल वाटर डेवलपमेंट अथॉरिटी ने 2010 में इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बिहार सरकार को दी जो अंतिम रूप में केन्द्रीय जल आयोग की नियमावली के पालन का ख्याल रखते हुए सुधार के बाद बिहार सरकार को मिली और उसे के बाद से इस योजना के क्रियान्वयन पर गंभीरतापूर्वक विचार शुरू हुआ और अब इसे स्वीकृति मिल गई है और केंद्र से धन मिलने के रास्ता भी खुल गया है। इस परियोजना के निर्माण से बाढ़ नियंत्रण के साथ-साथ कोसी-मेची के दोआब में 2.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर अतिरिक्त सिंचाई होने लगेगी।

इस लिंक के निर्माण के बाद अररिया (69 हजार हेक्टेयर), किशनगंज (39 हजार हेक्टेयर), पूर्णिया (69 हजार हेक्टेयर) और कटिहार (35 हजार हेक्टेयर) जिलों अतिरिक्त सिंचाई मिलने लगेगी और बाढ़ की समस्या के हल होने का सपना भी देखा जाने लगा है। इस योजना के क्रियान्वयन से कृषि उपज में वृद्धि होने की आशा व्यक्त की जा रही है और रोजगार की सम्भावनायें बढ़ेंगी।

परियोजना रिपोर्ट में यह बात जरूर स्पष्ट कर दी गई है कि इस नदी जोड़ योजना से केवल खरीफ के मौसम में ही इस दोआब में सिंचाई की व्यवस्था हो सकेगी क्योंकि रब्बी और गरमा के मौसम में इस नहर में पानी मिल पायेगा या नहीं यह तय नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार पानी की निश्चित सप्लाई के लिए व्यवस्था तभी हो पायेगी जब नेपाल में बराहक्षेत्र में कोसी पर हाई डैम का निर्माण हो जायेगा। हम यहाँ जरूर याद दिलाना चाहेंगे कि नेपाल में हाई डैम बनाने का प्रस्ताव सर्वप्रथम आज से 87 साल पहले 1937 में किया गया था और तभी से यह बाँध चर्चा और अध्ययन में बना हुआ है। यह बाँध कब बनेगा इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।

6300 करोड़ रुपये की योजना

पहले इसके लागत खर्च की बात कर लेते हैं। इस योजना की लागत जो शुरू शुरू में 2,900 करोड़ रुपये थी वह बिहार रारकार को अंतिम रिपोर्ट मिलने तक 4,900 करोड़ रुपये हो गई थी और अब इसका मूल्य लगभग 6,300 करोड़ रुपये बताया जा रहा है। केंद्र का सुझाव है कि अपनी तरफ से कुल लागत का 60 प्रतिशत केंद्र वहन करेगा और 40 प्रतिशत खर्च राज्य को करना होगा। बिहार का कहना है कि केंद्र इसमें राज्य को 90 प्रतिशत राशि का सहयोग करे और राज्य 10 प्रतिशत राशि अपनी तरफ से करेगा। यह भी कहा जाता है कि केंद्र 30 प्रतिशत राशि राज्य को ऋण के तौर पर देने का सुझाव दे सकता है। यह पूरा मामला अभी विचाराधीन बताया जा रहा है। इस योजना में पूर्वी कोसी मुख्य नहर (लंबाई 41.30 कि.मी.) को 76.2 कि.मी. बढ़ा कर मेची नदी में मिला दिया जायेगा जिससे कोसी के प्रवाह को थोड़ा सा घटाने का लाभ मिलेगा। नहर के अन्त में मेची नदी में केवल 27 क्यूमेक पानी ही दिया जा सकेगा जिससे कोसी घाटी में थोड़ा बहुत बाढ़ से राहत मिल सकती है। यह रिपोर्ट मान कर चलती है कि कोसी और मेची में एक साथ बाढ़ शायद नहीं आयेगी लेकिन दुर्योग से ऐसा हुआ तो तो योजना की सार्थकता पर पर तो सवाल उठेंगे। हमें विश्वास है कि योजना बनाने वाले विद्वानों ने इस पर जरूर सोचा होगा।

केंद्र सरकार और राज्य सरकार के निवेश पर केंद्र और बिहार के बीच बहस का अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है कि परियोजना रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है कि इस योजना से गैर मानसून महीनों को छोड़ कर रब्बी और अन्य फसलों के लिये पानी तब तक नहीं दिया जा सकता है जब तक कोसी पर बीरपुर के 56 कि.मि. उत्तर नेपाल में नदी पर नेपाल में बराहक्षेत्र में 269 मीटर ऊँचे हाई डैम का निर्माण नहीं हो जाता।

यहाँ यह बताया देना सामयिक होगा कि बराहक्षेत्र बाँध का प्रस्ताव पहली बार आज से 87 साल पहले 1937 में किया गया था और इस पर अनुसंधान अभी भी जारी है। हम यहाँ याद दिलाना चाहेंगे कि 22 सितंबर, 1954 के दिन बिहार विधानसभा में अप्रोप्रिएशन बिल पर चल रही बहस में भाग लेते हुए श्री अनुग्रह नारायण सिंह ने कहा था कि, ‘अभी दो-तीन वर्षों से इसकी जाँच हो रही थी कि कोसी नदी पर एक बाँध बाँधा जाये जो 700 फुट ऊँचा होगा और इस जाँच पर बहुत सा रुपया खर्च हुआ। तब मालूम हुआ कि इसमें 26 मील (42 कि.मि.) की एक झील बनेगी जिसमे कोसी का पानी जमा होगा और पानी जमा होने से बाढ़ नहीं आयेगी...लेकिन इसके पीछे इस बात पर विचार किया गया कि अगर वह 700 फुट का बाँध फट जाये तो जो पानी उसमें जमा है उससे सारा बिहार और बंगाल बह जायेगा और सारा इलाका तबाह और बरबाद हो जायेगा।’ कुछ इसी तरह की बात लोकसभा में बराहकक्षेत्र बाँध का नाम लेकर एन.वी. गाड़गिल ने 11 सितंबर, 1954 को कही थी जिसमें उन्होनें विश्व में भूकंप से हो रहे बाँधों पर प्रभाव की चर्चा की थी। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार ने इन बयानों का संज्ञान जरूर लिया होगा।

पूर्वी कोसी मुख्य नहर

जहाँ तक कोसी की पूर्वी मुख्य नहर का सवाल है उसकी पेटी में बालू का जमाव तभी से शुरू हो गया था जबसे नहर में 1963 में पानी छोड़ा गया और सन 2000 आते-आते नहर को बन्द करने की नौबत आ गई थी। उस समय यह नहर अपनी फुल सप्लाई डेप्थ तक बालू से भर चुकी थी और उसमें पानी देना मुश्किल हो रहा था। तब नहर के बालू की सफाई की बात उठी। यहाँ तक तो ठीक था पर इस बालू को कहाँ फेंकेंगे इसका सवाल उठा। वहाँ काम कर रहे इंजीनियरों का कहना था कि नहर से जब तक बालू नहीं हटेगा तब तक नहर बेकार बनी रहेगी और उसमें पानी नहीं दिया जा सकेगा। जैसे-तैसे 2004 के अन्त में बालू हटाने का काम शुरू हुआ जिसकी अनुमानित लागत 54 करोड़ रुपये थी। नहर सफाई का यह काम 4,000 हजार ट्रैक्टरों के माध्यम से जून 2005 तक चला।

इसका नफा-नुकसान क्या हुआ वह तो सरकार को मालूम ही होगा लेकिन नहर के दोनों किनारों पर बालू के पहाड़ जरूर तैयार हो गये थे। नहर के इर्द-गिर्द सरकार की ही जमीन थी इसलिये उस समय तो बालू को वहीं नहर के बगल में डंप कर दिया गया पर दुबारा यह काम करना पड़ेगा तब नहर का बालू किसानों की जमीन पर डंप किया जायेगा, यह तय है। इस बालू काण्ड की जाँच बिहार विधान सभा की 50वीं और 53वीं प्राक्कलन समिति की रिपोर्ट में दर्ज हैं जिसममें सरकारी धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार की नामजद रिपोर्टें दर्ज थीं। 53 वीं रिपोर्ट कहती है कि, ‘... इस तरह मुख्य पूर्वी कोसी नहर के बीरपुर डिवीजन में राजकीय कोष के अपव्यय और अपहरण के कतिपय मामलों का ही उल्लेख किया गया है, यों विशेष छानबीन पर हजारों उदाहरण इस प्रमंडल में और मिलेंगे।’ हम उम्मीद करते हैं कि विस्तृत परियोजना तैयार करने वालों को इस घटना के बारे में पता जरूर होगा और आपदा में अवसर खोजने वाले लोगों पर इस बार जरूर नजर रखी जायेगी।

जमीन का ढाल और नदियों का नहर पर लम्बवत प्रवेश

बीरपुर से माखनपुर (किशनगंज) के बीच, जहाँ यह नहर मेची में मिल कर समाप्त हो जायेगी, इस 117 कि.मी.के बीच की दूरी में इस प्रस्तावित नहर को कई नदियाँ काटती हुई पार करेंगीं जिनमें परमान, टेहरी, लोहंदरा, भलुआ, बकरा, घाघी, पहरा, नोना, रतुआ, कवाल, पश्चिमी कंकई और पूर्वी कंकई आदि मुख्य हैं। छोटे-मोटे नालों की तो कोई गिनती ही नहीं है। यह सभी नदी नाले उत्तर से दक्षिण दिशा में बहते है जबकि अपने प्रस्तावित विस्तार सहित कोसी-मेची लिंक पश्चिम से पूर्व दिशा में बहेगी। पूर्वी मुख्य नहर तो लगभग पूरी की पूरी इसी दिशा में चलती है जबकि प्रस्तावित नई नहर में थोड़ी-बहुत गुंजाइश बाकी रहती है क्योंकि वह आगे चल कर कुछ दक्षिण की तरफ मुड़ जाती है। जाहिर है पानी की निकासी दिक्कतें आयेंगी।

प्रस्तावित 117 कि.मि. नहर उत्तर दिशा से आ रहे पानी की राह में रोड़ा बनेगी और नहर के उत्तरी किनारे पर जल-जमाव बढ़ेगा और उस क्षेत्र की खेती पर इसका अवांछित प्रभाव पड़ेगा।

पूर्वी नहर से इस अटके और नहर तोड़ कर निकलते हुए पानी से सुपौल जिले के बसंतपुर और छातापुर और अररिया जिले के नरपतगंज प्रखण्ड के कितने गाँव बरसात के मौसम में डूबते-उतराते रहते हैं। यह पानी पश्चिम में बिशुनपुर से लेकर बलुआ (डॉ. जगन्नाथ मिश्र-भूतपूर्व मुख्य मंत्री और केन्द्रीय मन्त्री का गाँव), चैनपुर और ठुट्ठी, मधुरा से लेकर पूरब में बथनाहा तक चोट करता है और जल-जमाव की शक्ल में लम्बे समय तक बना रहता है। इस दौरान यहाँ के लोग भारी तबाही झेलते हैं।

कुछ साल पहले ठुट्ठी के पास धानुकटोली के गाँव वालों ने नहर को काट दिया था। यह लोग जानते थे कि सोमवार के दिन कटैया बिजली घर को फ्लश करने के लिये नहर बन्द रहती है और उसके पानी का कोई खतरा नहीं रहता है। इसलिये नहर काटने के लिये सोमवार का दिन सबसे उपयुक्त रहता है।

होता यह है कि फुलकाहा थाने (नरपतगंज प्रखंड) के लक्ष्मीपुर, मिर्जापुर, मौधरा, रग्घूटोला, मिलकी डुमरिया, नवटोलिया, मंगही और संथाली टोला आदि गाँवों में नहर से अटके पानी की निकासी कजरा धार पर बने साइफन से होती है। इस साइफन की पेंदी ऊंची है इसलिये यह सारे पानी की निकासी नहीं कर पाता है। नहर के किनारे पानी लग जाने से मिर्जापुर में तो नहर अपने आप टूट गई मगर इसके बाद भी नहर के उत्तरी किनारे के किसानों की समस्या का समाधान नहीं हो पाया। उधर के लोग पानी की निकासी के लिये नहर को काटने के लिये आ गये। नहर के दक्षिण में नरपतगंज के गढ़िया, खैरा, चन्दा और धनकाही आदि गाँव पड़ते हैं। नहर कट जाने की स्थिति में यह लोग मुसीबत में पड़ते।

नहर एक तरह से सीमा बन गई और दोनों तरफ कर योद्धा अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र के साथ आमने–सामने आ गये। उत्तर वाले लोग नहर काटने के लिये और दक्षिण वाले उसे रोकने के लिये। झगड़ा-झंझट बढ़ा पर नहर काट दी गई। मामला-मुकदमा हुआ, पंचायत बैठी। अफसरान आये तब जा कर कहीं समझौता हुआ और दोनों पक्षों ने आश्वासन दिया कि आगे से नहर नहीं काटेंगे। हम विश्वास करते हैं कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति अब नहीं होगी।

कुसहा तटबन्ध की दरार और मुख्य कोसी पूर्वी नहर-2008 से मिली सीख

2008 में जब कुसहा में कोसी का पूर्वी तटबन्ध टूटा था तब इस नहर का क्या हुआ था वह जानना भी दिलचस्प होगा। 18 अगस्त, 2008 के दिन कोसी का पूर्वी तटबन्ध नेपाल के कुसहा गाँव के पास टूट गया। इस स्थान पर कोसी पूर्वी तटबन्ध के काफी पास आ गई थी और उसने वहाँ के स्पर पर 5 अगस्त के दिन से ही चोट करना शुरू कर दिया था। विभागीय अकर्मण्यता के कारण उस बाँध को टूट जाने दिया गया क्योंकि बाँध के टूटने में 13 दिन का समय कम नहीं था कि तटबन्ध को बचाया न जा सके। इतना समय किसी भी दुर्घटना से निपटने के लिये कम नहीं होता। बाँध जब टूटा तो उस दरार से निकला पानी बिरपुत पॉवर होउस की ओर भी बढ़ा और उसने 13 किलोमीटर पर मुख्य पूर्वी कोसी नहर को तोड़ दिया। कोसी की लगभग आधा किलोमीटर चौड़ी एक नई धारा बन गई और वह पानी जहाँ-जहाँ से गुजरा उसे तहस-नहस करके रख दिया। चारों तरफ तबाही मची और कम से कम 25 लाख लोग इस नई धारा के पानी की चपेट में आये। इस बाढ़ की मार कटिहार तक के लोगों ने भोगी थी। हम विश्वास करते हैं कि कोसी-मेची लिंक योजना बनाने वाले तकनीकी समूह को इस घटना की जानकारी जरूर दी गई होगी और उन्होनें इसका संज्ञान लिया होगा और एहतियात बरती होगी।

कोसी-मेची लिंक नहर की परियाजना रिपोर्ट यह स्वीकार करती है कि गंगा और महानंदा के क्षेत्र में कुछ इलाका जल–जमाव से ग्रस्त है पर इसका कारण किसानों द्वारा क्षेत्र का अतिक्रमण है इसलिये पानी की निकासी में असुविधा होती है। इसलिये पानी की निकासी में कुछ असुविधा होती है पर अब लिंक नहर को पार करके पानी को उस पार पहुँचाने की व्यवस्था कर दी गई है। यही काम अगर कोसी पूर्वी मुख्य नहर के निर्माण के समय कर दिया गया होता तो आज हमें यह सब बातें कहनी नहीं पड़तीं। फिर भी हम विश्वास करते हैं कि यह काम इस बार जरूर किया जायेगा।

रिपोर्ट यह भी सुझाव देती है कि विस्थापितों का पुनर्वास प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिये। हमें इस बात का दु:ख है कि कोसी परियोजना का काम 14 जनवरी, 1955 के दिन शुरू किया गया था और वहां के विस्थापित अभी भी अपने पुनर्वास के लिये संघर्ष कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि इस बार विभाग अपनी बात जरूर याद रखेगा।

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गंगा की अविरलता-निर्मलता के समक्ष हम नित नई चुनौतियां पेश करने में लगे हैं। अविरलता-निर्मलता के नाम पर खुद को धोखा देने में लगे हैं। घाट विक...
गंगा नदी - गंगा व हिमालय : पर्वत के रूप में हिमालय वातावरण का प्रतिपालक है

गंगा नदी - गंगा व हिमालय : पर्वत के रूप में हिमालय वातावरण का प्रतिपालक है

MMITGM : (41) : ब्रह्म-मुख, पदार्थिय, शक्तिपूर्ण, प्रवाह-मार्ग वातावरण है. यही ब्रह्म-रूपधारी, पंच-दिशाओं की, पंचमहाभूतों की प्रवाह-शक्ति का...
गंगा संरक्षण आवश्यक, फिर गंगा बेसिन की सहायकों, जलाशयों, भूगर्भीय जल स्त्रोतों की अनदेखी क्यों?

गंगा संरक्षण आवश्यक, फिर गंगा बेसिन की सहायकों, जलाशयों, भूगर्भीय जल स्त्रोतों की अनदेखी क्यों?

भारत की आधी से अधिक जनसंख्या का पालन पोषण एक मां के समान करती है गंगा. प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष..हर देशवासी कहीं न कहीं इसी गंगत्त्व से जु...
गंगा नदी - हिमालय और गंगा जैसे प्राकृतिक संसाधनों का महत्त्व समझें (MMITGM : 39 व 40)

गंगा नदी - हिमालय और गंगा जैसे प्राकृतिक संसाधनों का महत्त्व समझें (MMITGM : 39 व 40)

MMITGM : (39) हे प्रचंड-आवेगों की विभिन्नता के शक्ति-तरंगों को अपने हृदयस्थ करने वाले हिमालयन-शिवलिंगाकार भोलेनाथ! आपने आकाश-मार्ग, पाताल-मा...
गंगा नदी - प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के लिए हिमालय का संरक्षण होना आवश्यक है (MMITGM : 36 व 37)

गंगा नदी - प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के लिए हिमालय का संरक्षण होना आवश्यक है (MMITGM : 36 व 37)

MMITGM : (36)हिमालयन-शिवलिंग के बदलते स्वरूप से, इसकी न्यून होते शक्ति-संतुलन से, तीव्र होता विश्व की आर्थिक सम्पदा विघटन और प्रचंड होती विश...
गंगा नदी - गंगा नदी संरक्षण का दससूत्रीय कार्यक्रम

गंगा नदी - गंगा नदी संरक्षण का दससूत्रीय कार्यक्रम

हिमालय तीन प्रमुख भारतीय नदियों का स्रोत है, यानि सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र. लगभग 2,525 किलोमीटर (किमी) तक बहने वाली गंगा भारत की सबसे लंबी...
गंगा नदी - गंगा और मानव-शरीर में जीवन्त समरूपता, गंगा और मानव-शरीर पर स्थान और समय के प्रभाव में समरूपता : अध्याय-3 (3.7)

गंगा नदी - गंगा और मानव-शरीर में जीवन्त समरूपता, गंगा और मानव-शरीर पर स्थान और समय के प्रभाव में समरूपता : अध्याय-3 (3.7)

जिस तरह विभिन्न क्षेत्रों, प्रांतों व देशों के लोग, विभिन्न शारीरिक एवं चारित्रिक गुणों के होते हैं, उसी तरह विभिन्न क्षेत्रों एवं देशों की ...
गंगा नदी - हिमालय पृथ्वी के वातावरण और जलवायु को निर्धारित करता है, यह वातावरण का कंट्रोलिंग पॉवर हाउस है. MMITGM : (34 व 35)

गंगा नदी - हिमालय पृथ्वी के वातावरण और जलवायु को निर्धारित करता है, यह वातावरण का कंट्रोलिंग पॉवर हाउस है. MMITGM : (34 व 35)

केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (34) हिमालयन शिवलिंग भारत सहित समस्त पृथ्वी के वातावरण और जलवायु के पर्वतीय पावर मोनीटरिंग ...
गंगा नदी - एनजीसी की बैठक में लिया गया निर्णय – गंगा की सहायक नदियाँ भी की जाएंगी प्रदूषण मुक्त

गंगा नदी - एनजीसी की बैठक में लिया गया निर्णय – गंगा की सहायक नदियाँ भी की जाएंगी प्रदूषण मुक्त

नेशनल गंगा काउंसिल की प्रथम बैठक में प्रधानमंत्री माननीय मोदी ने कहा कि जिस प्रकार गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के प्रयास किए जा रहें हैं,...
गंगा नदी - गंगा और मानव-शरीर पर समय एवं स्थान के प्रभाव में समानता, अध्याय-3

गंगा नदी - गंगा और मानव-शरीर पर समय एवं स्थान के प्रभाव में समानता, अध्याय-3

बरसात के बाद गंगा का जल-स्तर, मिट्टी का आयतन, ऑक्सीजन की मात्रा, ऊर्जा तथा शरीर का आकार घटने लगता है. ऐसी स्थिति में भूमिगत जल जो बरसात में ...
गंगा नदी - पहाड़, शिव का जीवन्त-शरीर है (MMITGM : (31 व 32)

गंगा नदी - पहाड़, शिव का जीवन्त-शरीर है (MMITGM : (31 व 32)

कण-कण में, हर एक एटम में, एलेक्ट्रोन और प्रोटोन के बराबरी रूप से विराजमान न्यूट्रॉन, ब्रह्मांड को आच्छादित करने वाले, भगवान शिव से-हे भोलेना...
गंगा नदी - पहाड़ों और नदियों के संबंध को समझने के लिए जानना होगा पौराणिक-धार्मिक धाराओं को : MMITGM : (29 व 30)

गंगा नदी - पहाड़ों और नदियों के संबंध को समझने के लिए जानना होगा पौराणिक-धार्मिक धाराओं को : MMITGM : (29 व 30)

MMITGM : (29), पहाड़ शिवलिंग हैं - भगवान शिव से-हे भोलेनाथ! पहाड़ रूप महान स्थिर और केन्द्रस्थ, आप का शिवलिंग जड़ पाताल में कहाँ है पता नहीं. च...
गंगा नदी - नदियों का चारित्रिक गुण समझना होगा, गंगत्त्व में ही छिपा है हिंदुत्व (MMITGM : 27 व 28)

गंगा नदी - नदियों का चारित्रिक गुण समझना होगा, गंगत्त्व में ही छिपा है हिंदुत्व (MMITGM : 27 व 28)

MMITGM : (27) भगवान शिव से-हे भोलेनाथ! विश्व भर में पर्वतों के विभिन्न स्वरूपों को धारण करने वाले आप हैं. जैसे मानव शरीर में हृदय रक्त मस्ति...
गंगा नदी - गंगा और मानव-शरीर में जीवन्त समरूपता : MMITGM (31)

गंगा नदी - गंगा और मानव-शरीर में जीवन्त समरूपता : MMITGM (31)

मानव युवा-अवस्था में प्रदूषित भोजन, जल एवं वायु को बहुत हद तक अपने शरीर में व्यवस्थित करने का सामर्थ्य रखता है. उसी तरह गंगा की शक्ति बरसात ...
गंगा नदी - आणविक सिद्धांत का प्रदिपादन : MMITGM : (24 व 25)

गंगा नदी - आणविक सिद्धांत का प्रदिपादन : MMITGM : (24 व 25)

भगवान शिव से- हे भोलेनाथ! आज भगवान श्रीकृष्ण के कथन, "अच्छेद्योअ्यमदाह्येअ्यमक्लेद्योअ्शोष्य एव च। नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोअ्यं सनातनः"।। (...
गंगा नदी – शक्ति तरंगों का सिद्धांत, MMITGM: (22 & 23)

गंगा नदी – शक्ति तरंगों का सिद्धांत, MMITGM: (22 & 23)

MMITGM: 22 भगवान शिव से - हे भोलेनाथ! भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं (गीता-2.22) जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करत...

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