शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः। गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात् ।। गीता : 15.8 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
वायु गंध के स्थान से गंध को जैसे ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देह का
स्वामी जीवात्मा भी जिस शरीर का त्याग करता है, उससे इन मन सहित इन्द्रियों को ग्रहण फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है, उसमें
ले जाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
देखने, सुनने, सूँघने, स्वाद लेने और इन्द्रिय विषय का भोग
करने और इन सब में मन की सहभागिता शक्ति के विशेष रूप में रूपांतरित होती आत्मा न्यूकलियस के साथ अक्षों पर टेप-रिकॉर्ड
की भाँति रिकॉर्ड करते रहते चलता है और जब आत्मा शरीर छोड़ती है तो उसे अपने साथ अपने
इन्द्रियों और मन द्वारा किये गये कर्म गठरी को ले जाना पड़ता है. जो इस आत्मा को
दूसरे शरीर-धारण करने का आधार होता है. यही है कार्य का अविनाशी सिद्धांत, तुम
छुपकर कुकर्म करते हो पर तुम्हें इसका परिणाम भोगना ही पड़ता है. All senses performed by the sense-organelle are well
recorded and as per principles of work and energy, it is never lost and you
have to have its consequences. यही है एक शरीर के कार्य से दूसरे शरीर को धारण
करना, यही है, “कोई तुम्हें देख रहा है”.
गंगा कहती है :
तुम्हें मैं देख रहीं हूँ, इसका एहसास तुम्हें नहीं होता
है. Even the minute’s
work is energy and it has impact and it is never to be lost. And the continuous integration of these are the distortion of
the most valuable Natural-System. यह तुम नहीं समझ रहे हो. यही समस्या है, इसलिए तुम जो डैम, बैराज, STP, माल-वाहक जहाज
आदि का निर्माण अपने सभी इन्द्रियों को और मन को पूर्ण रूप से स्वतंत्र छोड़कर कर
रहे हो, तुम परिणाम नहीं
जानते. तुम मालिक हो, कौन क्या करेगा? परिणाम
जो जब भोगेगा, तब भोगेगा, तुम्हें इन
सबसे क्या मतलब? जितने भी कार्य हुए आज तक किसी का “इम्पैक्ट-एसेसमेंट” नहीं हुआ, भीमगोडा,
नरोरा बैराज अंग्रेजों ने क्यों बनाया? डैम के ऊपर और नीचे जल-गुणवत्ता में क्या अन्तर है? लैंड-स्लाइड में
क्या अन्तर है? फरक्का-बैराज का इम्पैक्ट
क्या-क्या है? इन सब में सुधार
कैसे, यह कौन करेगा? ये सभी प्रश्न
कौन सुनेगा, यदि मोदी-योगी सरकार इसे नहीं सुनेगी और 60 साल से ज्यादा से
कोई सरकार नहीं सुनी, तो गंगा में कभी
सुधार नहीं हो पायेगा.