“अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरित नित्यसः ।। तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः” ।। गीता : 8.14 ।।
हे अर्जुन! जो अनन्य भाव से निरंतर मेरा स्मरण करता है, उसके लिए मैं सुलभ हूँ, क्योंकि वह मेरी भक्ति में प्रवर्त्त
रहता है.
श्लोक का अंग्रेजी में अर्थ :
I am easily attainable by that steadfast Yogi who remembers Me constantly and daily with a single mind,O son of Partha.
गंगा कहती है..
हमारी प्रवृत्ति को जानना ही, नदी-प्रकृति को जानने की तकनीक है. यही है नदी के “एनाटोमी-मोर्फोलोजी-जलप्रवाह-तकनीक” को जानना. क्या शरीर की “एनाटोमी-मोर्फोलोजी” को जाने
बिना कोई डॉक्टर
हो सकता है?
और क्या वह तुम्हारा इलाज कर सकता है? हमें देख-भाल करने वाले, बड़े-बड़े धाराप्रवाह प्रवचन करनेवाले बिना नदी के आधारभूत
ज्ञान वाले ही हैं और नदी-मौलिकता की न कहीं पढ़ाई है और न कहीं नदी के सम्पूर्ण चारित्रिक परीक्षण के लिए प्रयोगशाला है. ये ही मेरी समस्याओं की जड़ है, फिर भी संक्षेप में मै अपनी प्रवृत्ति
तुम्हें बताती हूँ.
मेरा जल मिट्टी पर प्रवाहित होने के कारण, मिट्टी की घर्षणशक्ति से प्रभावित होते हुए, नत्तोदर-उन्नत्तोदर किनारों के संग गतिज-स्थैतिक ऊर्जाओ को विभिन्नता से बदलते कटाव-जमाव का अंजाम देती मेरी
धाराएं घूमते तरंगावस्था में वक्रपथ गामिनी रहती है. इस प्राकृतिक स्वभाव को इन्हीं के स्वभाव के तहत संतुलित करते हुए आसानी से न्यूनतम खर्च में, बाढ़, कटाव, जल-प्रदूषण, न्यूनतम-जल-प्रवाह, प्रदूषण-मॉडल के विभिन्न सिद्धान्त, पुस्तिका में उद्धृत तथा इंटरनेट पर स्थापित है. यही है, नदी प्रवृति प्रकृति पर आधारित नदी की सुलभ व्यवस्था को प्राप्त करना.