“अब्यक्ताद् ब्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमें ।। रात्रागमें प्रलीयन्ते तत्रैवाब्यक्तसंग्यके” ।। गीता : 8.18 ।।
श्लोक का हिन्दी में अर्थ :
ब्रह्मा के दिन के शुभारंभ में सारे जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते है और फिर जब रात्रि आती है तो वे पुनः व्यक्त में विलिन हो जाते हैं.
श्लोक का अंग्रेजी में अर्थ :
At the approach of the Brahma's day all manifestation proceed from unmanifested state; at the approach of the night, they merge verily into that alone, which is called the unmanifested.
गंगा कहती है...
ब्रह्मा के कमंडल, विष्णु के चरण, शिव के मस्तक, इन समस्त स्थानों पर मैं तुम्हारे लिए अव्यक्त
हूं. इन जगहों पर मैं पूर्णतया शक्तिस्वरूपा हूँ, परन्तु पृथ्वी पर व्यक्त रूप से “जल-शक्तिप्रवाह धारा” तथा अव्यक्त
रूप से अनंत जीवों का “जन्म-पालन-पोषण”
करने वाली हूँ. मेरे बेसिन द्वारा सौर्य-ऊर्जा का अवशोषण विश्व में सबसे ज्यादा होने के कारण इसकी विविधता, संख्या-मात्रा-गुण शक्ति सर्वोत्तम
है. ब्रह्मा के शरीर जैसे, मेरे शरीर में जीवों का बाह्य एवं अन्तः प्रवाह का संतुलन नहीं है. यही inflows and outflows
imbalances of energy and material fluxes से उत्पन्न समस्या का निरंतरता से बढ़ने का कारण है. इसका दूसरा कारण reaction
against action का नहीं होना है. विभिन्न
कार्य जो हुए है, हो रहे हैं या जो होंगें, इनके परिणाम का सही आंकलन का नहीं होना ही असंतुलिता का परिणाम है.