“तस्मात्सर्बेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।। मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेबैष्यस्यसंशयः” ।। गीता: 8.7 ।।
अतएव, हे अर्जुन! तुम्हें सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिन्तन करना
चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्तव्य को भी पूरा करना चाहिए. अपने कर्मों को
मुझे समर्पित करके तथा अपने मन और बुद्धि को मुझमें स्थिर करके तुम निश्चित रूप से
मुझे प्राप्त कर सकोगे.
श्लोक का अंग्रेजी में अर्थ
Therefore,
at all times, constantly remember me and fight. With mind and intellect
absorbed in Me, thou shall doubtless come to Me.
गंगा कहती है..
तुम्हें सदैव मेरे पंच-भूतों की संतुलितता की व्यवस्था का
चिन्तन-मनन, अपने शरीर की
भाँति, मेरे लिये भी
करना चाहिए. यह होना चाहिये, देश के प्रतिष्ठित और सर्वोच्च गंगा-व्यवस्था संस्था “गंगा-मंत्रालय” में. यहाँ, मंथन करो, गम्भीरता से देख
कर और सोचकर कि कैसे तुम्हारी ही तरह मेरा शरीर भी पंचमहाभूतों से निर्मित और
संतुलित रूप से समन्वित है. व्यवस्था करो कि कैसे..
(1) विश्व की
सर्वश्रेष्ठ उर्वरा-शक्ति रखने बाली, 10 लाख वर्ग कि.मी. का क्षेत्रफल लिए, भारत के विशाल
मैदान, विश्व का पालन
करने की क्षमता रखनेवाली,
शक्ति सम्पन्न हो?
(2) जिसका जल, औसतन 10 पी.पी.एम
ऑक्सीजन एवं अन्य बहूमूल्य औषधियाँ युक्त हो, कैसे बचायी जा सके?
(3) महान
पर्वतराज-हिमालय की गोद, आकाशीय क्षेत्र
में, संतुलित ताप-दबाब
युक्त ऋतुओं में समस्त रोगों के निदान कर, स्वस्थ बना कर और शरीर में बुद्धि-विवेक-भर कर, पालन करती हो, उसका संरक्षण
कैसे किया जा सके?
(4) यही परम्-शांति होगी, मुक्ति-प्रदान करनेवाली गंगा की सम्पूर्ण व्यवस्था वाला
गंगा-मंत्रालय. इन्हें करो तभी तुम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो.