“कवि पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेधः ।। सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्” ।। गीता: 8.9 ।।
मनुष्य को चाहिए कि परमपुरुष का ध्यान सर्वज्ञ, पुरातन, नियंता, लघुतम से भी
लघुतर, प्रत्येक के पालन
कर्ता, समस्त
भौतिकबुद्धि से परे, अचिन्त्य तथा
नित्य पुरूष के रूप में करे. ये सूर्य की भाँति तेजवान हैं और इस भौतिक प्रकृति से
परे दिव्य रूप हैं.
श्लोक का अंग्रेजी में अर्थ :
Man should
meditate on The Omniscient, the Ancient, the Over ruler, Miniature than the
atom, the sustainers of all, of form Inconceivable, Self-luminous like the Sun
and beyond the darkness of Maya.
गंगा कहती है..
केन्द्रस्तध्यान स्थिरता की सम्रृद्ध-तकनीक प्रस्तुत करती
है कि चाहे शरीर जीव का हो या निर्जीव का, यही इन्जीनियरींग है, शिवलिंग को नदी में देखना-समझना-पूजना (व्यवस्था) ही बाढ़-कटाव-प्रदूषण
आदि का नियंत्रण है. शिवलिंग-न्यूकलियस एक तरफ “प्रेशरड्रैग-फोर्सेस” से बाढ़ को
सम्बोधित करता है तथा दूसरी तरफ अपने ढ़ाल से तीव्र-गतिज-ऊर्जा एवं सियर-फोर्स तथा
सकेण्डरी-सर्कुलेशन की शक्ति से कटाव, मियैन्ड्रिंग को निरूपित करता है. इसी तरह नदी-प्रदूषण तथा
अन्य समस्त कारणों का कारण,
न्यूकलियस, शिवलिंग के
प्रेशरड्रैग-फोर्सेस तथा काइनेटिक एनर्जी रेडिएशन(शिव संग शक्ति) को नहीं समझना
तथा इनकी पूजा नहीं करना ही है.