वेदेषु यग्येशु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्ठम् ।। अत्येति तत्सर्बमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाह्यम् ।। गीता : 8.28 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
योगी पुरुष इस रहस्य को तत्व से जान कर वेदों को पढ़नें में तथा यज्ञ, तप और दानादि को करने में जो पुण्यफल बताया गया है, उन सबका निःसंदेह उल्लंघन कर जाता है और सनातन परमपद को प्राप्त होता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
वेदाध्ययन, आत्मनानूभूति तुम शरीर नहीं आत्मा का एक सर्वशक्तिवान् केन्द्र-बिन्दु हो इसका ज्ञान देता है. यज्ञ
प्रयोगात्मक रूप से सब कुछ उस परब्रह्म का है और उसी परब्रह्म का रूप है इसके के द्वारा उसी परब्रह्म को अग्नि को समर्पित करना है. तप परब्रह्म को शरीर में एक-बिन्दु पर अवस्थित करना तथा सभी इन्द्रियों की अनूभूति कर पदार्थीय एवं शक्तिय समस्त-तरंगों को उसे बिना संवेदना के समर्पित करते रहने को कहते हैं. दान किसी तरह के अभाव के कारण उसके उदिग्न कम्पनावस्था के अभाव की पूर्ति कर उसे स्थिरावस्था में लाने को दान कहते हैं. इन समस्त कार्यों का उद्देश्य यदि इच्छा-रूपी फल तो स्वर्ग समस्त इन्द्रिय तृप्ति के भोग को भोगने का स्थान प्राप्त कर तथा पुनः दुःखमय संसार में जन्म लेना होता है, लेकिन यदि उपर्युक्त समस्त कार्यों में शक्ति और समय को ना लगाकर हर पल के कार्य को दृढ़ संकल्पित कर एक-लेबर की तरह कर लिया जाये तो समस्त परेशानी दूर होकर अच्छी नींद आयेगी, यही है वेदाध्यन. यज्ञ,तप,दान और अन्य पुण्य-कर्म फल इच्छायुक्त अस्थायी सुख स्वर्ग के लिये है और उपर्युक्त समस्त कार्यों से रहित और अटल ज्ञान भक्ति की निरंतरता से मात्र एक परब्रह्म की प्राप्ति करने का निरंतर प्रयास करना, संसार में नहीं लौटने की सरलतम तकनीक है, यही है भगवान श्रीकृष्ण का योगी एकाग्र होने का सिद्धान्त एक के साधे सब सधे, सब सधे सब जाय.
गंगा कहती है :
वेदाध्ययन, यज्ञ, तप, दान आदि पुण्य कर्म से कहीं ज्यादा मात्र मेरी सेवा का तथा गीता का मर्म तुम समझो, यही हमारी व्यवस्था का सूक्ष्म बिन्दु तथा लक्षित भारत की सम्पूर्ण व्यवस्था है. तुमने मानव विकास, जल-संसाधन, पर्यावरण, कृषि, वन, हाइड्रोपावर, नेविगेशन आदि अनेक विभाग खोल रखे है. ये सभी अलग-अलग कार्य कर रहे हैं. किसी का तकनीकी
सम्बन्ध दूसरों से नहीं हैं, जब कि वास्तविकता यह है कि ये सारे नदी के विभाग हैं. ऐसा लगता है कि तुम्हारे विभिन्न अंगों के अलग-अलग विभिन्न डाक्टर हैं और किसी को किसी से कोई सम्बन्ध नहीं है. ऐसी स्थिति में क्या तुम्हारा सही देखभाल हो पायेगा? यही है तुम्हारी समस्याओं का सही निदान नहीं होना. उदाहरण के तौर पर, बनारस का बालू-क्षेत्र वन विभाग, घाट, सिंचाई विभाग, अस्सी नदी, जल-निगम आदि करते हैं. तुम यह बताओं कि आँख की बिमारी को क्या हृदय का डाक्टर देखेगा? यही है समस्या का सही-निदान नहीं होना. पैथोलॉजीस्ट से डाक्टर का कार्य करवाना, यही है शक्ति और समय का संकलित मूल लक्ष्य की दिशानुमुख नहीं होना. यही भगवान श्रीकृष्ण कहते कि तुम सब कुछ त्याग कर मेरी शरण में आओ और यही मैं कह रही हूँ कि तुम मात्र हमें समझ कर हमारे साथ आत्मीय व्यव्हार करो तुम्हारी समस्त समस्याओं का निदान मैं करूँगी.