“मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् ।। नाप्नुबन्ति महात्मानः संसिन्धिं परमां गताः” ।। गीता : 8.15 ।।
मुझे प्राप्त करके महापुरुष, जो भक्ति-योगी है, कभी भी दुःखों से पूर्ण इस अनित्य जगत में नहीं लौटते, क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त हो चुकी होती है.
श्लोक का अंग्रेजी में अर्थ :
Reaching the highest perfection and having attained Me, the great-souled one are no more subjected to rebirth-which is the home of pain and ephemeral.
गंगा कहती है..
शिव की मस्तक-स्थली एवं गिरिराज-हिमालय के उच्च शिखर, विश्व की सर्वोच्च स्थैतिक ऊर्जा से परिपूर्ण विभिन्न-शक्तियों से सम्पन्न, कल-कल की ध्वनि से भारत-धराधाम में उतरती प्रवाहित होती, महान-योगियों-सन्यासियों को ध्यान-ज्ञान-विज्ञान से संतृप्त करती और हजारों-लाखों मनुष्यों का उद्धार करने की क्षमता वाली, वेद-पुराण, उपनिषदों में वर्णित, भारत के प्राणों में समाहित, समस्त सामजिक आचरणों में संलगन, गंगा-जल के अमृत्व को और गंगा के मातृत्व-कोमल-मृदुल व्यवहार को, अनंत-काल तक आने वाले भविष्य में कोई परिवर्तन गंगा से आर्थिक-लाभ को प्राप्त कर स्वीकार नहीं कर सकता है. यह है भारत की आत्मा की बुलंद और तीक्ष्ण आवाज. अत: गंगा संरक्षण, देश की सर्वोच्च आवश्यकता है और रहेगी. इसके बदले किसी तरह का आर्थिक लाभ स्वीकार नहीं किया जा सकता है. यही भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि “हमें जिसने पा लिया, उसे अन्य किसी वस्तु को पाने की जरूरत नहीं है.” यही भारत की आत्मा कहती है कि हमें केवल गंगा चाहिये, इसके बदले अन्य कुछ भी स्वीकार नहीं है.