“आब्रह्मभुवनालोका: पुनराबर्तितोअर्जुन ।। मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न बिद्यते:” ।। गीता : 8.16 ।।
श्लोक का हिन्दी में अर्थ :
हे अर्जुन ब्रह्मलोक तक सभी लोक पुनरावृत्ति वाले हैं अर्थात् वहाँ जाने पर पुनः लौटकर संसार में आना पड़ता है ; परन्तु मुझे प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता.
श्लोक का अंग्रेजी में अर्थ :
All the worlds, O Arjun, including the realm of Brahman, are subject to return, but after attaining Me, O son of Kunti, there is no rebirth.
गंगा कहती है..
नियंत्रित और संयमित बुद्धि के उपयुक्त आवृति आयाम और क्रमबद्ध शक्ति-प्रवाह-धारा को निरंतरता तथा अविरलता से निश्चित बिन्दु पर प्रवाहित करते रहने से तुम, जिसतरह, महायोगी सिद्ध होते मुक्ति, परब्रह्म को कठिनता से प्राप्त करते हो, इससे कहीं महान सरलता से, मेरी “शक्तिजल-प्रवाह-धारा” से मुक्ति पा सकते हो. अत: अदृष्यावलौकित विचार-धारा से दृष्यावलौकित, प्रत्यक्ष जल-धारा मुक्ति पाने के सरलतम उपाय को प्रस्तुत करता है. गंगा माता की आतंरिक भावन, श्रद्धा, तुम्हारी कोशिका-व्यवस्था को रूपांत्रित करते शक्ति-सम्पन्न बनाती है. यह है माता के साथ समन्वय स्थापित करना है, यह समन्वय, भावना से भावना, पदार्थ-शक्ति-प्रवाह का ताल-मेल हर समस्या का समाधान भी है. उदाहरण के लिए, अवजल को गंगा में निस्तारित करना है तो, इसके लिए गंगा से केवल बालू-क्षेत्र में ही सही विधि से समन्वय स्थापित किया जा सकता हैं, जिससे तुम्हारा प्रदूषक व्यवस्थित
हो और नदी का प्रवाह तीव्र हो. यही भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि हमें, शांति को, शांत रहकर, हम से समन्वय स्थापित कर प्राप्त करो.