“सहस्त्रयुगपर्यन्तमहर्यद् ब्रह्माणों बिदुः ।। रात्रिं युगसहस्त्रान्तां तेअ्होनात्रविदो जनाः” ।। गीता : 8.17 ।।
श्लोक का हिन्दी में अर्थ :
मानवीय गणना के अनुसार एक हजार युग मिलकर ब्रह्मा का एक दिन बनता है और इतनी ही बड़़ी ब्रह्मा की रात्रि भी होती है.
श्लोक का अंग्रेजी में अर्थ :
They who know the true measure of day and night, know the day of Brahman, which ends in the thousand Yugas and the night which also ends in the thousand Yugas.
गंगा कहती है...
हमारे सत्य, त्रेता, द्वापर और कल-युग को समझो. राजा हरिश्चन्द्र, राजा राम, भगवान श्रीकृष्ण के समयकाल के अतिरिक्त अभी भी मैं विभिन्न नैसर्गिक कार्यों को विभिन्न समयों में विभिन्नता से सम्पादित करते हुए अभी भी ढ़लती शक्ति और सामर्थ्य के साथ विराजमान हूँ. युग के हिसाब से शक्ति का ढ़लना और समस्या का बढ़ना, तुम एक वर्ष के आँकड़े से समझ सकते हो. एक वर्ष में मेरे चारों युगों के स्वरूप आते हैं. जून में, गंगादशहरा के उपरांत मेरा सत्य-युग होता है. मेरी स्थैतिक-गतिज और प्रदूषण-नियंत्रण-क्षमता के संग अधिकतम होता है. यह जून से सितम्बर का समय मिट्टी-जल-शक्ति-संग्रह प्रदूषण पर नियंत्रण का समय यानि सत्य-युग है. अक्टूबर-दिसम्बर मेरा “त्रेतायुग”, जनवरी-मार्च मेरा “द्वापर युग” और अप्रैल, मई, जून मेरा “कलिकाल” है.