“प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव ।। भ्रूबोर्मध्ये प्राणमाबेश्य सम्यक् स तं परन पुरुषमुपैति दिव्यम्” ।। गीता: 8.10 ।।
मृत्व के समय जो व्यक्ति अपने प्राण को भौहों के मध्य स्थिर
कर लेता है और योग-शक्ति के द्वारा अविचलित मन से पूर्णभक्ति के साथ परमेश्वर के
स्मरण में अपने को लगाता है, वह निश्चय रूप से भगवान को प्राप्त होता है.
श्लोक का अंग्रेजी में अर्थ :
He who
meditates on Him at the time of death, full of devotion with the mind unmoving
and also by the Power of Yoga, fixing the whole Pran between the eyebrows, he
goes to that Supreme, Resplendent Purush.
गंगा कहती है..
भारत के महानसाधकों, योगी-महात्माओं, शास्त्र-पुराणों की तत्वदर्शिता ने यह सत्यापित किया कि गंगा की आणविक-शक्ति कोशिका को उसी तरह व्यवस्थित कर शक्तिशाली बना देती है, जैसे चुम्बक का घिसान लोहे के मॉलिक्यूल को सीधा कर देता है तथा उसके भीतर शक्तिशाली पोल का निर्माण कर देता है. अतः गंगा-जल, मात्र औषधि नहीं हैं, यह कोशिका-व्यवस्था, चुम्बकीय-संस्कार-जागृति-शक्ति से युक्त है. तुम इसे पान या सेवन करके तो देखो, तुम्हारी काया-कल्प हो जायेगी. तुम्हारे चरित्र का पुनर्निर्माण हो जायेगा, भारत-भर में तुम गंगाजल सप्लाई करो, देखो, यह रोग-मुक्त और संस्कार-युक्त भारत होगा. यहाँ के बच्चे महान-संस्कारी और ओजस्वी होंगे, तुम चारित्रिक-दोषों वाली विभिन्न समस्याओं से मुक्त हो जाओगे. यही है गंगा-जल की एक बूंद का महत्व, मरने वालों के मुख में डाल उनके समस्त पापों को क्षण में नष्ट करते परब्रह्म तक ले जाने की शक्ति लिए. गंगा-जल की इस शक्ति को पहचानों, यह मात्र पय-जल नहीं है. गंगा-जल, अकेले, तुम्हें महान-अतुलनीय विश्व-गुरु बना सकता है. तुम हीरे को पहचानो. कहाँ मृग-तृष्णा में भटक रहे हो? हीरे को हीरा ही रहने दो, इसे पत्थर मत बनाओ.