श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च। अधिष्ठाय मनश्चायं बिषयानुपसेवते ।। गीता : 15.9
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
जिस प्रकार दूसरा स्थूल शरीर धारण करके जीव विशेष प्रकार के कान, आँख, जीभ, नाक तथा स्पर्श-इन्द्रियां प्राप्त करता है, जो मन के चारों ओर केन्द्रित है. इस प्रकार वह इन्द्रिय विषयों के एक विशिष्ट समुच्चय का भोग करता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
पांच इन्द्रियां निरंतर क्रिया-प्रतिक्रिया करती हैं. अतः शरीर को यदि एटम मानते हैं तो ये इन्द्रियां आउटरमोस्ट ऑर्बिटल के विभिन्न सब-ऑर्बिटल पर अवस्थित हुए, इनमें से लिंग सबसे नीचे ( f-5), जिह्वा (f-4), नाक (f-3), आँख (f-2) और कान (f-1) सब-ऑर्बिटल पर स्थित हैं. इस तरह एक जन्म की संकलित इन्द्रिय शक्ति से सबसे अधिक लिंग से, दूसरे स्थान पर जिह्वा से, तीसरे स्थान पर नाक से, चौथे स्थान पर आँख से और पाँचवें स्थान पर कान से प्रभावित होती है. अतः दूसरे जन्म का सबसे मुख्य कारण लिंग है. अतः जो लिंग से जितना ज्यादा उपभोग या मंथन करेगा, मन उसका उसी में डूबा रहेगा. अतः उसका दूसरा जन्म ज्यादा काम भोगने वाले जीव के रूप में नीचे ढुलक जायेगा. यही है, गीता के जन्म लेने की वैज्ञानिकता.
गंगा कहती है :
जैसे-जैसे इन्द्रिय विषयों की, भोग-वासनाओं की ललक तीक्ष्ण होती जायेगी, मेरी शक्तियों का उपयोग इसी भूख को संतुष्ट करने में लगता जायेगा. यही है, डैम-बैराज, STP, मालवाहक-जहाज, बाढ़, मियैन्ड्रींग, प्रदूषण, चरित्रहीनता के समस्त कार्य, विभिन्न शारिरिक मानसिक रोग, सर्वत्र मार-काट, लूट-पाट, अशांति. यानि यही है नीचे गिरना.