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गंगा नदी - प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के लिए हिमालय का संरक्षण होना आवश्यक है (MMITGM : 36 व 37)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • December-23-2019
MMITGM : (36)


हिमालयन-शिवलिंग के बदलते स्वरूप से, इसकी न्यून होते शक्ति-संतुलन से, तीव्र होता विश्व की आर्थिक सम्पदा विघटन और प्रचंड होती विश्व की अशांति है. शिव से- हे भोलेनाथ! क्या आपके विशालतम और महानतम हिमालयन-शिवलिंग के छोटे-बड़े समस्त स्वरूपों का, उसके आकाशीय-चरित्र का, आकार-प्रकार, स्थिति, पदार्थिय गुण (shape-size-orientation-location and material) उसके शक्ति-तरंग के अवशोषण और उसकी निष्तरणता को परिभाषित नहीं करता है? क्या हमारे शरीर के किसी अंग के एक एक सूक्ष्म स्थान का रूपांतरण सम्पूर्ण-शरीर के शक्ति-संतुलन की संवेदना को नहीं दर्शाती? क्या एक विशाल पावर जेनरेटर का एक छोटा पुरजा नहीं रहने पर उसके कार्य बाधित नहीं होते? हे भोलेनाथ! हमारी यह तत्परता, एकाग्रता, तल्लीनता से आपके इस पावर-सिस्टम को देखने-समझने-सुव्यवस्थित और संरक्षित करने की विवेक-शक्ति आप दे कर भी क्यों नहीं देते? अनादि काल से आपके इस शिवलिंग की अनंत-गाथाओं को कौन पुछे, अनन्त-कार्यों को दिन-प्रतिदिन कौन कहे, एक-एक पल साँस रूपी वायु का, एक-एक बूंद जल का स्त्रोत आपका यह पावर-हाऊस है. इसको नहीं समझना, जिस पेड़ पर स्थित उसी पेड़ के जड़ को छिन्न-भिन्न करना, वातावरण, संस्कृति से छेड़छाड़ करने को, निरंतरता से बढ़ते जाने को ही आपके हिमालयन शिवलिंग को नहीं समझना है भोलेनाथ. हे भोलेनाथ! हमारी इस विवेक-शून्यता का आप के हिमालयन और अन्य पर्वतीय-लिंग को मात्र पहाड़ समझना, इसको तोड़ना-फोड़ना-खोदना आदि द्वारा इसके स्वरूप को बदलते जाना कितनी जड़ता है, भोलेनाथ! आप इनको बर्दाश्त नहीं कर रहे हैं, वे अपने दिन प्रतिदिन की तीक्ष्ण होती अशांति को जान नहीं पा रहे हैं. ज्ञान दीजिये, हे भोलेनाथ! आपको कोटिश: प्रणाम.

MMITGM : (38)


हे महान हिमवान, हिमालयन- शिवलिंगाकार भोलेनाथ! आप तप की तीक्ष्णता से उद्विग्न वाष्पीकृत जल के प्रचंड वेग को रोककर उसके दु:ख-दारूण को दूर करते अपने आनंदानंद विशाल-शीतल आंचल में समाहित क्या इसलिये नहीं करते कि आपके जीव-जगतों के जीव अपने-अपने जीवत्व को संरक्षित रख पायें? अपने जीव-जगत से दिन-रात इतना स्नेह करने वाले आप आनंदानुभूति भूतनाथ कैसे बनते? क्या भूतनाथ का अर्थ शांति में शांति, tranquility inside perpetually है? क्या यही आपका ध्यानस्थ होना, पूर्णातिपूर्ण स्थैतिक-ऊर्जा की स्थिति में रहना है? क्या यही है आपके हिमालयन-लिंग की पोटैन्शियल-एनर्जी? क्या यही कारण है हिमालय को तपस्थली होना? क्या ज्ञान-ध्यान-योग-शक्ति-भक्ति-मुक्ति का विश्व में मात्र यही क्षेत्र है? क्या इसी कारण से समस्त काव्यों में वर्णित, इस परम्-शांति रूप शक्ति प्राप्त करने का यह महान तीर्थ, आपके शरीर रूप, आपका यह हिमालयन-लिंग नहीं है? इन कारणों से यह लगता है भोलेनाथ! कि आपकी गम्भीर शांति भंग होना ही वातावरणीय-असंतुलन का होना होता है और इसी असंतुलन की गम्भीरता से आपकी तीसरी आँख का खुलना होता है. अत: तीर्थों का, शांति-प्राप्ति का, पृथ्वी पर मात्र देश भारत के समस्त तीर्थों का तीर्थ आपके हिमालयन शिवलिंग है. आपके इस स्वरूप को कोटिशः प्रणाम.

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