प्रधानमंत्री, भारत सरकार को पत्र :
गंगा/नदी का बालूक्षेत्र वाराणसी सहित देश भर के कोरोना वायरस का सेनिटाइजर है. कृपया, देश रक्षार्थ इसको उपयोग में लाने की कृपा करें.
द्वारा : प्रो. उदयकान्त चौधरी; संस्थापक : गंगा अन्वेषण केन्द्र, बी.एच.यू एवं महामना मालवीय इन्सटीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर दी गंगा-मैनेजमेंट, B-26/21 C-6, ब्रह्मानंद एक्शटेन्शन-1, दूर्गाकुण्ड, वाराणसी-221005
परमादरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, भारत सरकार, नयी दिल्ली-11001
महाशय,
निम्नलिखित संक्षिप्त वैज्ञानिक तथ्यों का अवलोकन करने की कृपा करें : नदी का बालूक्षेत्र जिसे किसी तरह से उपयोग में नहीं लाया जा रहा है, वह नदी की समस्त व्यवस्थाओं यथा बाढ-कटाव-प्रदूषण और कोरोना वायरस जैसे संक्रमण रोकने का न्यूकलियस है. अतः वर्तमान में कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिये प्रदूषकों की व्यवस्था के लिये बालूक्षेत्र की शक्तियों का उपयोग करवाने की कृपा करें. विषय का संक्षिप्त विवरण नीचे प्रस्तुत है :
गंगा का बालूक्षेत्र स्लाइम लेयर का निर्माण कर मल-जल के पैथोजेनिक बैक्टीरिया को विनष्ट करते हुए इसके ऑक्सीजन स्तर को बढ़ाता है और इसके जैविक भार, बीओडी को न्यून करना गंगाजल के बैक्टेरियोफेज का संरक्षक है और कोरोना वायरस का सेनिटाइजर है. अतः देश की समस्त नदियाँ, जो देशभर के भू और सतही जल के नर्वस सिस्टम हैं, उनके बालूक्षेत्र कोरोना वायरस का देश-व्यापी हैं. इसलिये नदी के बालूक्षेत्र का उपयोग करते हुए नदी की मौलिक शक्ति से कोरोना वायरस को परास्त करना विश्व-स्तरीय तकनीक हो सकती है.
गंगा में मल-जल की व्यवस्था के लिये और इसके बैक्टेरियोफेज की संरक्षण के लिये बालूक्षेत्र की एक-एकड़ जमीन शहर की दो हजार एकड़ जमीन से ज्यादा के बराबर है और इस बालू क्षेत्र का एरिया सैकड़ों- हजारों एकड़ में शहर के तीन भागों में अवस्थित है. शहर-गाँव नदी के नदोत्तर किनारे पर बसे होते हैं और बालूक्षेत्र उन्ननदोत्तर किनारे पर 8-10 मी. नीचे होता है. इसकी गहराई पचासों मीटर होती है, जो पैथोजेनिक बैक्टेरिया का फिल्टर है. यह अवजल के बीओडी भार को शून्य तक पहुँचा सकता है. यही बालूक्षेत्र प्रयागराज के कुम्भक्षेत्र में है. यहाँ 4-5 करोड़ लोगों के मल-जल की व्यवस्था का कारक गंगा का बालूक्षेत्र है. अतः बालूक्षेत्र ही गंगा-जलगुण संरक्षक, मल-जल व्यवस्थापक और प्राकृतिक सेनिटाइजर का कार्य अनादि कालों से करते आ रहा है. इसलिये देश के समस्त नदी किनारों के गाँवों और शहरों-महानगरों में यह बालूक्षेत्र सामने और अगल-बगल दोनों तरफ से कटाव नहीं होने वाला नदी का उन्ननदोत्तर किनारे का स्थिर क्षेत्र है. शहर/गाँव से नीचे अवस्थित होने के कारण यहाँ के STP का या प्रत्यक्ष अवजल के प्रवाह को बालू क्षेत्र में स्वतः के ढ़ाल से सही जगह पर और सही तकनीक से जोड़ देने से बालू के “स्लाइम लेयर” का उदभव होता है और बालू के अन्य गुणों से, जैसे सौर्य-ऊर्जा के ताप के उपयोग से, जो 54-55 डिग्री से. पर पहुँच जाता है, समस्त पैथोजेनिक बैक्टीरिया का विनष्टकरण हो जाता है. (इस कार्य से संबंधित पाँच एमटेक और तीन पी. एच.डी थेसिस के कार्य हुए हैं.) इस सरल तकनीक से देश के करोड़ों लोगों को गंगाजल के बैक्टेरियोफेज को संरक्षित रखते हुए कोरोना वायरस से सरलता से सेनिटाइज किया जा सकता है. इस तकनीकी को तीन-ढलान का सिद्धांत कहते हैं. वाराणसी में जिसके तहत शहर के समस्त अवजल को न्यूनतम खर्चे से बालू-क्षेत्र में सेनिटाइज करते हुए अवजल को नदीजल में रूपांतरित कर नदी प्रवाह को बढ़ाया जा सकता है. इसके तहत भगवानपुर एसटीपी, असिनदी एवं वाराणसी दक्षिण के मल-जल स्त्रोत को वाराणसी दक्षिण के बालूक्षेत्र से जोड़ा जा सकता है. इससे शहर में भदैनी जल-आपूर्ति व्यवस्था में सुधार भी आयेगा. उसी तरह वाराणसी के उत्तरी क्षेत्र में दीनापुर एसटीपी एवं अन्य अवजल स्रोतों को गंगा के उत्तरी भाग के बालूक्षेत्र से जोड़ा जा सकता है. यह होगा वाराणसी को कोरोना वायरस से सेनिटाइज करना.
अनेक आदर के साथ
प्रोफेसर उदय कांत चौधरी
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Through: Prof. U.K.Choudhary Founder-Ganga Research Centre, BHU
Founder- Director, Mahamana Malviya Institute of Technology for Ganga Management, Varanasi-221005 M-9415201883
E-mail: mmitgm@gmail.com
Topic: The Sand-bed of the Ganga/river system is the Greatest Sanitizer of the Corona virus:
The Conservation of the meditional potentiates of the Gangajal, the Bacteriophage, from the incoming polluting sources and to work with it as the Sanitizer of the Corona virus the Convex Bank Side Sand Bed of the Ganga System is the best Energy-Site. For this work one acre of sand-bed areas is equal to more than two thousand times land area of the city site. This sand-bed exists in hundreds and thousands acre area in three sites, viz, up-stream, downstream and in front of the cities/towns/villages. The level difference between the city and the sand-bed sites is between 8 to 10 meters where under the Gravity Forces pollutants from STP can be supplied. In each site the stable sand-bed area exists in several squire kilometres of several meters in depth. This sand-bed site at Prayagraj works as Sanitizer for 30-40 million people in Kumbh-Mella. The Ph.D thesis report states the B.O.D of the pollutant from STP reduces down from 5-10 ppm to zero when is passed through the Model of the Sand-bed kept in the Sun. Thus the utilization of sand-bed technology for Sanitization of millions of people in the Kumbh mela proves that utilization of Sand-bed Technology is the methodology for conserving the Bacteriophage of the Gangajal and the Sand bed of all river systems of the world can work as the Sanitizer for the Corona virus. Thus this further proves that all pollutant sources rushing to the river must pass through the Sand bed site at proper location and with proper technology. With this technology the pollutants from Bhagawanpur STP and the Assi and other drains causing the water quality problems of drinking water supply can be Sanitized.