The Ganges
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गंगा नदी - पहाड़, शिव का जीवन्त-शरीर है (MMITGM : (31 व 32)

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  • U.K. Choudhary
  • December-09-2019
कण-कण में, हर एक एटम में, एलेक्ट्रोन और प्रोटोन के बराबरी रूप से विराजमान न्यूट्रॉन, ब्रह्मांड को आच्छादित करने वाले, भगवान शिव से-हे भोलेनाथ! आप के जीव-जगत-संचालन का तकनीक क्या है? पंच महाभूतों को आप कैसे संचालित करते हैं? क्या पहाड़-रूप-लिंग ही आपका मोनीटरिंग-सिस्टम है? जल में जल की विभिन्नता, उसके अन्य विभिन्न ऊर्जाओं में विभिन्नता, मिट्टी-वायु और आकाशिय-स्वरूप का निरंतरता से रूपांतरण आप कैसे करते हैं? दृश्यावलोकित है, गंगा-यमुना-ब्रह्मपुत्र-सोन-गंडक-कोसी आदि जैसे विश्व के समस्त नदियों के प्रस्फुटित-जलों की, इनकी ऊर्जाओं की, इनके क्रिया-कलापों की विभिन्नतायें. इसका कारण पहाड़ रूपी आप के लिंग की पाताली-जड़ पृथ्वी की विभिन्न-तहों के भूजलों का अवशोषण अपने विभिन्न ज्वालामुखीय संरचनाओं के तहत विभिन्नता से करती है. जल-गुणों की विभिन्नता का यह कारण और इनके प्रस्फुटन का स्थान, स्थैतिक-ऊर्जा के उपयोग द्वारा आप गतिज-ऊर्जा के माध्यम से पंचतत्व को संचालित करते हैं. यही है आप का जीव-जगत को संकलित करने का तकनीकी ज्ञान. यही है आप का शिवलिंगाकार स्वरूप, गिरिराज हिमाचल एवं अन्य. हे ब्रह्मांड के संस्थापक-संचालक आप को कोटिशः प्रणाम है.


MMITGM : (32) :

पाताल-गंगा और आकाश-गंगा का स्थान से परिवर्तन वातावरण है तथा समय से परिवर्तन जलवायु है.

पृथ्वी के पर्वताकार शिवलिंग शिरोमणि हिमालय के निवासी भगवान शिव से-हे भोलेनाथ! आपके इस लिंग का आकाश-गंगा और पाताल-गंगा क्या और कैसे हैं? दोनों में संबंध क्या हैं? कलकलाती नदियाँ, झरझराते झरने, सनसनाती हवायें, इन सभी के कारक पाताल और आकाश गंगा कैसे? क्या ये ही वातावरण को, खासकर भारतीय-जलवायु को परिभाषित करते हैं? पाताल-गंगा तो हिमालय-पहाड़ की गहराई से संबंधित है. क्या किसी ने इसकी गहराई नापी है? इसे ही हिमालय-शिवलिंग को पाताल में अवस्थित कहते हैं. शिवलिंग की इस पाताली अवस्थित से विभिन्न नदियो के विभिन्न गुणों के जलधाराओं को भूजल के अवशोषण से निस्तारित होना ही पाताल-गंगा है. इन भूजलों का सतही जलों में रूपांतरण, ताप-दबाव-आद्रता आदि में समय और स्थान से निरंतरता का परिवर्तन वातावरण और जलवायु को परिभाषित करता है. क्या भोलेनाथ ! यही आपके मैटेरियल्स और एनर्जी के अन्तःप्रवाह और इनके बाह्य-प्रवाह के अन्तर को वातावरण कहते हैं? अतः पाताल-गंगा और आकाश-गंगा का अन्तर वातावरण है. यह आपके पहाड़-रूप शिवलिंग से उत्पन्न होता भोलेनाथ! अतः साँस लेने की क्रिया आप से होती है? आपको कोटिशः प्रणाम है.

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