केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (129) :
सब ओर से जैसे भजना को तैसे भजना, समस्त क्रियाओं के तदनुरूप प्रतिक्रियों का होना, पाप-कर्मो के परिणाम को भुगतना, प्रकृति के सर्वोत्कृष्ट शक्ति-प्रवाह गंगा का दोहन और शोषण का परिणाम कोरोना वायरस के निदान के संस्कार की जागृति का नहीं हो पाना जैसे को तैसा है.
हे भोलेनाथ ! आप का भक्त कौन है? जो आपका नाम रटता रहता है अर्थात "ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय", करता रहता है, वह आपका भक्त है. इससे उसको क्या फायदा है और आप उसके बदले में उसे क्या देते हैं? कुछ तो आप को करना ही पड़ता होगा, क्योंकि क्रिया की प्रतिक्रिया होगी ही. क्या आप भी उसका नाम रटते रहते हैं. यह तो संभव नहीं है क्योंकि आपका नाम रटने वाले करोड़ों में हैं. अतः कृपा कर बतलाइये कि आप अपने भक्तों को भक्ति-भाव की प्रतिक्रिया में क्या करते हैं? यदि वह आपका नाम रटता है तो इसका अर्थ है वह शक्ति-तरंग को अपने शरीर के भीतर भेजता और वह अपने शरीर के बाहर के बातावरण को भी तरंगायित करता? इस तरह उसके शरीरस्थ कोशिका और अगल-बगल के वायु के अणु आवेष्टित हो जाते हैं. अतः आप का भक्त आप का नाम रटते रटते, शक्ति-तरंगों की निरंतरता के प्रवाह से अपने कोशिका के स्वरूप को बदलता है. इससे वह आप के रुप की आभा को अपने भीतर विस्थापित कर लेता है. यही है आप के चारित्रिक गुण को, आपकी शक्ति को अपने अन्तःकरण में प्रतिष्ठित कर लेना . उसके भीतर के कोशिका का आपका जैसा और जितना गहरा और स्थिर खाँका वह खींचता है तदनुसार उसको आपकी भक्ति से शक्ति का स्वतः ही मिल जाना "जस का तस" है. यही है अपनी भावना के तहत आप की भक्ति से, आप के नामरूपी शक्ति-तरंग से अपने कोशिका की व्यवस्था करते, प्रतिक्रिया स्वरूप आपका आशीर्वाद प्राप्त करते, अपने मनवांछित आपकी शक्ति को प्राप्त कर लेना. यही है भक्त जैसे आप को भजता है वैसे ही आप भी उसको भजते हैं. यही है जैसी क्रिया उसी अनुरूप प्रतिक्रिया है. यही भगवान श्रीकृष्ण यहाँ कह रहे हैं...
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ।। गीता : 4.11 ।।
हे अर्जुन ! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं.
हे परब्रह्म ! सूक्ष्मातिसूक्ष्म तरंग, मन-वचन-कर्म के, जिस भावना से, जिस आवृत्ति से आवेष्टित होता है तदनुसार प्रतिक्रिया का होना ही होना क्यों है? यह क्या इसलिये है कि पृथ्वी का शक्ति-संतुलन कायम रहे सके? यही है "the balance of internal energy, inflow is equal to out flow" क्या यह इसलिए क्योकि सूर्य से आने वाली निर्धारित शक्ति-प्रवाह का प्रभाव चक्रमण करती पृथ्वी पर समतूल्य रूप से होता रहे? यही है ना आने वाली शक्ति की अन्तःप्रवाह और लौटने वाली शक्ति के बाह्यप्रवाह के अन्तर से, वातावरण के स्वरूप को परिभाषित होना. अतः संसार के समस्त पदार्थों-कार्यों के हृर क्षण का स्वरूप उनमें होने वाले शक्ति और पदार्थों के अन्तः और वाह्य प्रवाह का अन्तर है. यह अन्तर जितनें ही ज्यादा आयाम का समस्या का निदान उतना ही गम्भीर. कोरोना वायरस के पनपने का और उसके निदान का कोई उपाय 2-3 महिने में अमेरिका में नहीं हो पाना उतना आश्चर्य नहीं है जितना भारत को नहीं हो पाना है क्योंकि यह "गंगा और साक्षात राम, कृष्ण और वेदों-पुराणों का, पृथ्वी का स्वर्ग देश है." हे मोलेनाथ ! आप देश के प्रधान नेतृत्व "मोदी-योगी" से गंगा-यमुना-संगम पर विश्व-प्रसिद्ध अनादिकाल की प्रतिष्ठित धर्मस्थली प्रयागराज में विश्व कल्यानार्थ यज्ञ करवाने की कृपा कीजिये.