बालू-कण का औसतन साइज और इस बालू से निर्मित बालू-ढ़ेर का माप, आकार-प्रकार-ढ़ाल-उँचाई आदि अपनी प्राकृतिक विलक्षणता के अतिरिक्त सौर्य-शक्तियों को अपने गुणों की विभिन्नताओं से अवशोषित करने की क्षमताओं को परिभाषित करता है. अतः जैसे-जैसे बालू बदलता है, इसके ढ़ेर बदलते है तो अवजल के भारी तत्त्वों सहित, कार्बनिक-अकार्बनिक, पैथोजन्स एवं अन्य जैविक पदार्थों को व्यवस्थित करने एवं B.O.D भार को संतुलित करने की क्षमता भी बदल जाती है. इसलिये बालूक्षेत्र में STP के लिए सबसे उपयुक्त जगह का चयन आवश्यक है.
गंगा के नदोत्तर-किनारे पर स्थित वाराणसी के तीन-भागों में, उन्नदोत्तर किनारों पर बालू क्षेत्र स्थित हैं. सामने का बालूक्षेत्र शहर के स्तर, RL से 8-11 मी. के अंतर पर अवस्थित है. यह नगवाँ के सामने 8 मी. नीचा और चौड़ाई 563 मी., ढ़ाल 1 in 0.00654 ; क्षेत्रफल 453 वर्ग मी. का है. दशाश्वमेध घाट के सामने 9.5 मी, चौड़ाई 856 मी., ढ़ाल 1 in 0.00825 एवं क्षेत्रफल 1404 वर्ग मी. का है और पंचगंगा के सामने बालूक्षेत्र 11 मी. नीचा, चौड़ाई 418 मी., ढ़ाल 1 in 0.4208 और क्षेत्रफल 1313 वर्ग मी. का है. (यह सभी आंकड़े, डा. अनूप नारायण सिंह के पी.एच.डी थीसिस के हैं.) इन आंकड़ों से और विभिन्न क्षेत्रों के इनके अवजल छानने की शक्ति से यह सत्यापित किया गया कि दशाश्वमेध का साइट सर्वोत्तम है. बालूक्षेत्र में STP लगाने के उचित स्थान का चयन करना तकनीक के अनुसार होना आवश्यक है.
तीन-तरफ के बालूक्षेत्र के अलग-अलग क्षेत्रफल तथा इनके चारित्रिक गुण होते हैं. औसतन इनका क्षेत्रफल 5-12 वर्ग कि.मी. होता है. वाराणसी में अवजल को व्यवस्थित करने के लिये 0.38 वर्ग कि.मी. बालू-क्षेत्र की आवश्यकता है और एक क्षेत्र में औसतन 9 वर्ग कि.मी. बालू का क्षेत्र है. अतः प्रत्येक क्षेत्र में बालू- क्षेत्र लगभग 25 गुणा ज्यादा है. इन बालू क्षेत्रों का उपयोग नहीं होना ही दीनापुर, भगवानपुर STP जैसे विभिन्न समस्याओं का कारण है.