“6 पी.पी.एम”, नदी के पेय-जल में आँक्सीजन की न्यूनतम मात्रा का होना आवश्यक है. इसके साथ ही, पेय-जल में, B.O.D. भार 0-2 पी.पी.एम तक ही होना चाहिए. गंगा-जल, जिसमें आँक्सीजन रखने की क्षमता 12-14 और B.O.D शून्य पी.पी.एम ऋषिकेश के ऊपर रहती है. वह काशी में, गंगा के किनारे अधिकतम आँक्सीजन 3-5 और न्यूनतम B.O.D 5-8 पी.पी.एम तक जनवरी-फरवरी से जून-जूलाई तक रहता है और पूरे शहर में इनटेक-स्ट्रक्चर से जल की आपूर्ति होती है. यदा-कदा दुर्गंध युक्त जल घरों में आता रहता है. इसके साथ ही जल की मात्रा कम रहती है. यही कारण है कि गर्मी के दिनों में लोग विशेषकर छोटे बच्चे पीलिया-टाइफाईड आदि जल-जन्य बीमारियों का शिकार होते हैं. समस्या इतनी जटिल हो जाती है कि अधिकांश सरकारी ट्यूबवेल या तो सुख जाते हैं या उनसे भी दुर्गंधयुक्त जल निकलता है. इसी तरह गंगा के काले एवं कहीं कहीं दुर्गंध करते जल में नाक बंदकर स्नान करना पड़ता है. ऐसी दर्दनाक स्थिति वर्त्तमान के STP और सीवर-सिस्टम में खराबी के कारण होता है. इस समस्त जल की न्यून मात्रा और नष्ट हुऐ गुण का निदान “तीन-ढलान के सिद्धान्त” के तहत “बालूक्षेत्र” ही कर सकता है. इसलिए सात राज्यों में बनने वाले 18000 करोड़ की लागत के 115 STP का निर्माण “गंगा के बालूक्षेत्र” में ही होना आवश्यक है. विदित हो कि यह समस्त कार्य लगभग 12000 करोड़ में ही संभव हो सकते हैं.
निष्कर्ष : बालूक्षेत्र का STP गंगाके अवजल प्रवंधन की बाईपास सर्जरी है.
समय के अन्तराल से एक-तरफ, अवजल की बढती मात्रा-घनत्व और जटिल होती उसकी रासायनिक संरचनाएं और दूसरी तरफ गंगा का न्यून होता जल-स्तर, STP की क्षमता को न्यून करती चली जायेगी. यह कुछ दिनों में तथ्यहीन हो जायेगा. इसका मुख्य कारण, इसमें नदी की किसी मौलिक शक्ति का रंचमात्र भी कहीं उपयोग नहीं होता है, किन्तु, यदि यही STP बालूक्षेत्र में होता है तो सीपेज और ट्रिकलिंग-फिल्टर के सिद्धान्त से अवजल को छानना, गुरुत्वाकर्षण बल से और साइफोनिक-एक्शन से अवजल को ले जाना, बैंक की स्थिरता के सिद्धान्त से कार्य के स्थायित्व का निर्वहन होना और नदी मोड़ पर, जल-प्रवाह के अधिकतम-वेग को उन्नादोत्तर किनारे पर स्थानांतरित होने से अवजल के डिफ्यूजन की शक्ति को और नदी की सेकेंडरी-सर्कुलेशन से डिस्पर्शन की शक्ति का उपयोग होने को जानना आवश्यक है.