प्रयागराज कुम्भ में लगातार करोड़ों लोगो के मल-जल की व्यवस्था वहां का बालूक्षेत्र करता है. संगम के बालूक्षेत्र की शक्ति का उपयोग न करने के स्थान पर इस शक्ति को नजर-अंदाज करना, गंगा की जटिल समस्या है.
यमुना जी, गंगा जी जैसी बड़ी नदी से, नदोत्तर किनारे पर, जहाँ का कटाव ज्यादा गहरा होता है. वहाँ संगम कर बड़ी नदी के घावों को भरते हुए उसे स्थिरावस्था में ला देती है और उन्नदोत्तर किनारे को बालू से भर देती है. यही बालू नदी की तरफ के अपने ढाल से, अपने अवजल छानने की शक्ति, कोफिसियेंट ऑफ परमियैबलिटी से, एबजौर्पशन-एडजौर्पशन से, स्लाइम-लेयर के फौर्मेशन से, बालू की जैविक शक्ति से और सौर्य-शक्ति से गंगा से सटे किनारे पर करोड़ों लोग दिन-रात मल-जल का त्याग करते हैं और इसका प्रभाव गंगा-जल पर कुछ भी नहीं होता है. यह क्रिया लम्बे समय तक होती रहती है और लोग आनंद से गंगा जी में डुबकियां मारते रहते हैं. यही है बालू की शक्ति और इसको STP के लिये उपयोग नहीं करना अपितु यत्र-तत्र इसका निर्माण कर देना, गंगा के लिए बहुत बड़ी समस्या है.