ग़ज़ब मूरख है तू प्रानी,
चाहता है अमन अपना,
सेहत धन चमन अपना,
कहता है मां जिसको,
करता है मलीं उसको,
बांधता मां गले बेड़ी,
ये नादानी, ये मनमानी,
न जीने देगी कल तुझको,
मैं हैरां हूं,
परेशां हूं, मैं मां तेरी.....
नसों से खींच सब पानी,
तू हरता क्यों है जवानी,
बांधों को बना धंधा,
गले में डाल मेरे फंदा,
तू हठ करता है क्यों प्राणी,
घुटता है अब दम मेरा,
मुझको सांस लेने दे,
खोल दे बांध तट बंधन,
छोड़ दे भूमि मेरी तू,
निर्बाध-अविरल बहने दे,
आज़ाद मुझको रहने दे,
ये नादानी, ये मनमानी,
न जीने देगी कल तुझको,
मैं हैरां हूं,
परेशां हूं, मैं मां तेरी.....
बना बीमार तू मुझको,
निर्मलता का कर बिजनस,
कहता है मैं डॉक्टर हूं,
ग़ज़ब करता तू बेईमानी,
गर चाहता है निर्मलता,
न मल अमृत में मिलने दे,
न रीतन दे भू-जल को,
बचा ले वृक्ष-उपवन को,
न कटने दे मृदा तन को,
खनन को कर सीमित तू,
उर्वरकों से तौबा कर,
अनुशासन को बना सपना,
कसम खा गंग की प्यारे,
थाम ले बांह अब उनकी,
जो न्योछावर नदी खातिर,
ये नादानी, ये मनमानी,
न जीने देगी कल तुझको,
मैं हैरां हूं,
परेशां हूं, मैं मां तेरी.....
सहूंगी कब तलक तेरा,
जुल्म का मैं हटा डेरा,
ढहा दूंगी बांध-बंधन,
तोड़ दूंगी किनारों को,
रोके न रुकुंगी तब,
हिला दूंगी मैं चूलों को,
तू चीखेगा-चिल्लायेगा,
सुनुंगी न मैं तब तेरी,
समझता हो, संभल जा अब,
न चाहती नाश मैं तेरा,
पर होगी ये मज़बूरी,
ये नादानी, ये मनमानी,
न जीने देगी कल तुझको,
मैं हैरां हूं, परेशां हूं, मैं मां तेरी.....
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