केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (34)
हिमालयन शिवलिंग भारत सहित समस्त पृथ्वी के वातावरण और जलवायु के पर्वतीय पावर मोनीटरिंग सिस्टमस का न्यूक्लियस है.
हे जीव के जीवत्व-शक्ति शिवत्व के संचालक - भोलेनाथ! पृथ्वी की वातावरणीय विभिन्नताओं के शक्ति-ओर्बिटल्स का संचालन कैसे करते हैं? कहाँ-कहाँ विभिन्न समुद्र और कहाँ-कहाँ आपका पावर-हाउसेज? सूर्य को अपने-आप को स्थिर रखते हुए पृथ्वी को बहुआयामी-चक्रमण करवाते समुद्र-जल को वाष्पीकरण से तरंगायित करवाते, अपने पावर-सेन्टर्स का मोनीटरिंग ऐसे संतुलन अवस्था से करवाते हो कि जहाँ का जैसा-कर्म वहाँ का वैसा भोग. आपके इस मोनीटरिंग-सिस्टम के S-Orbital पर सबसे नजदीक भारत को रखा है. इसलिये तो भारत को आपने संतुलनावस्था में रखा, यहाँ न ज्यादा गरमी और न ज्यादा ठंडक है और साथ ही आनंदानंद वसंत दिया. हे भोलेनाथ! क्या यही कारण है कि आपका कैलाश-पुरी, केदारनाथ-मंदिर, बद्रीनाथ-मंदिर, मानसरोवर और न जाने क्या-क्या आपने अपने हिमालयन-शिवलिंग पर रखा? क्या भोलेनाथ! भारत को S-Orbital पर रखने के कारण ही आप यहाँ सतयुग में राजा हरिश्चन्द्र हो कर आये, त्रेतायुग में राजा-राम हुये, द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण हुए, यहीं आप की गाथा वेदों, पुराणों, महाभारत, गीता, रामायण आदि ग्रंथों में रची गयी. आपने गंगा को यहीं से अवतरित करवाया. भारत, मात्र को मुक्ति-भूमि बनाया. ये समस्त कार्य आप यहाँ इसलिये करते हैं भोलेनाथ! क्योंकि आपने यहीं अपना हिमालयन-शिवलिंग स्थापित किया. आपके इस लिंग स्वरुप को कोटिश प्रणाम है.
केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (35)
पर्वतीय शिवलिंग पृथ्वी के आन्तरिक एवं बाह्य पदार्थिय एवं शक्ति संतुलनावस्था की परिस्थितियों का, वातावरण का कन्ट्रोलिंग पावर-हाउस है.
पावर-हाऊसेज के नियंत्रायक शिव से- हे भोलेनाथ! आपके पर्वतीय-शिवलिंग की विभिन्नताओं की संरचनायें, आकार, प्रकार, ऊंचाई, गहराई, वातावरण की संतुलनावस्था के तहत कैसे निर्मित हुआ? उस समय की परिस्थितियाँ, पृथ्वी के भीतर और बाहर की अलग रही होंगी? पृथ्वी के तहों की तापीय दबाव स्थितियों के तहत ज्वालामुखीय-प्रस्फुटन हुआ होगा? इसके केन्द्र का निर्धारण हुआ होगा और प्रतिफलित चट्टान के आकार-प्रकार और उस चट्टान की छिद्रता, पोरोशीटी निर्धारित हुई होगी. तदनुसार उसकी ऊँचाई और ढ़ाल का मूल्यांकन हुआ होगा. आपके हिमालयन पर्वतीय लिंगों एवं अन्य क्षेत्रों के लिंगों से यह प्रत्यक्ष रूप से दृश्यावलोकित होता है कि लिंग के ऊंचाई के अनुपात में उसका ढ़ाल होता है. ऊँचाई के अनुपात में गहराई होती है और गहराई के अनुपात में चट्टान ज्यादा घनत्व की और उसकी भूजल अवशोषण शक्ति ज्यादा होती है. इन जटिल परिस्थितियों में आपकी पर्वतीय लिंगें वातावरणीय संतुलंता के निर्वहन का निराकरण करती आ रही हैं. यही है Structure defines the energy and energy defines the function, वातावरण की संतुलनावस्था आपने स्थापित कर दी है. अब यदि आप के पर्वतीय-लिंग के स्वरूप को बदला जाये तो वातावरण का क्या होगा, भोलेनाथ? यह आपको बतलाना है श्रीमान!