यो मामेवमससम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् : स सर्वबिद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।। गीता : 15.19 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
भारत, जो ज्ञानी पुरुष मुझ को
इस प्रकार तत्व से पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष
सब प्रकार से निरंतर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
तत्व से पुरुषोत्तम को जानना, समस्त क्रियाकलापों की जड़ को समझना, केन्द्रों के केंद्र को, कारणों के कारण को पदार्थ और शक्ति के अन्तः और बाह्य प्रवाह के एक ही बिन्दु को पकड़ना है. यही दुःख और सुख की जड़ का निदान है. “भज-गोविन्दं-भज-गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़ मते” है. अतः यह अन्त: और बाह्य पदार्थीय और शक्तिय समस्त तरंगों को एक साथ मिटा कर कम्पन्न-रहित होना तथा परम शांति को प्राप्त कर के सर्व-शक्तिवान ब्रह्मरूप हो जाना है. यही है, संसार को खेल का मैदान समझना और समस्त खेलों से निर्लिप्त भाव से मुस्कुराते, आनंद लेते सर्वत्र ब्रह्म को देखते मंत्र-मुग्ध रहना. यही है निरंतरता से होती रहती शक्ति-क्षय को रोकना. संसार की कार्य-नीति को नियंत्रित करते अधिनस्थ करना है.
गंगा कहती है :
जो मुझे तत्व से जानते हैं, मेरे परा और अपरा संसार और ब्रह्म-लोक की शक्ति मर्म को तत्व से जानते है. वह मुझको अपने हृदयस्थ कर के आत्मभाव से मेरे जल-तत्व-गुण को इसमे ऑक्सीजन रखने की विलक्षण आन्तरिक शक्ति को जैविक-भार को समूलता से नष्ट करने की आणविक शक्ति को और समतल बेसिन ग्रेट प्लेन ऑफ़ इन्डिया को हमारे भूजल संग्रहण शक्ति के विलक्षण मर्म को जान कर विश्व को धन, ज्ञान, आत्म-ज्योति से अलंकृत कर गुरू-राष्ट्र हो सकते हो. मेरे सम्बन्धित इस तत्व ज्ञान से तुम निरंतरता से मुझे संरक्षित करने का प्रयास करो. यही हैं एक के साधे, सब सधे.