मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम् ।। हेतूनानेन कौन्तेय जगत्परिवर्त्तते ।। गीता : 9.10 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
हे अर्जुन ! मुझ अधिष्ठाता के संरक्षण से प्रकृति चराचर सहित सर्व जगत को रचती है और इसलिए यह संसार चक्र घूम रहा है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
भूकम्प, तूफान आदि समस्त शक्ति-प्रवाहों के केन्द्र होते हैं. इसी प्रकार सूक्ष्माति सूक्ष्म से लेकर सूर्यमंडल सहित ब्रहमांड के समस्त पिण्डों के केन्द्र अपने-अपने पिण्डों के समस्त कार्यो को परिभाषित और संतुलित संचालन की अध्यक्षता करते हैं. यही है, एटम में न्यूट्रोन कोशिका आदि का केन्द्र सौर्यमंडल में सूर्य, देश में प्रधानमंत्री, मधुमक्खियों में रानी मधुमक्खी की अपनी-अपनी दुनिया में अध्यक्षता करना है. यही हैं अनंत-कालीन ब्रह्माण्ड को संचालित करने वाली प्रकृति की अध्यक्षता करने वाले भगवान श्रीकृष्ण, शिव, नारायण आदि नामों से प्रचलित परब्रह्म.
गंगा कहती है :
छोटी-बड़ी समस्त नदियाँ कड़ी-बद्धता से बड़ी से छोटी-नदियाँ, एक-दूसरों से मिलते हुए हमारी सहायक नदियाँ होती है. यह हमारे निर्धारित नत्तोदर किनारे के अधिक कटाव क्षेत्र के पास विनम्रता के साथ संगम करती हैं. इन संतुलंताओं के साथ मैं समस्त नदियों के सूक्ष्माति-सूक्ष्र्म से सबसे-बड़े प्रवाह इकाई को समेटते हुए उनकी अध्यक्षता करती हूँ. मेरे सतही स्तर से समस्त नदियों की समस्त इकाइयां एक साथ परिभाषित होती चलती है. आगे इन नदियों के भूजल भी हमारे ही अध्यक्षता से संचालित होते रहते हैं. हमारे इन कार्यों में मिट्टी-बालू-जमाव-कटाव आदि के कितने ही केन्द्र सम्मिलित होते रहते हैं. अत: मैं प्रकृति के समस्त खेलों की अध्यक्षता करती हूँ. मेरे उपरोक्त वर्णित क्रिया-कलापों को ध्यान में रखकर तुम नदी-जोड़ जैसे अपने विभिन्न विचारों को सुदृढ वैज्ञानिक और तकनीकी व्यवस्था के आधार से सोचो और ध्यान में रखो कि मैं तुम्हारी जीवात्मा हूँ.