त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापा यग्यैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते ।। ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्ननन्ति दिब्यान्दवि देवभोगान् ।। गीता : 9.20 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
तीनों वेदों में विधान किये हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोर रस को पीने वाले, पाप रहित पुरुष मुझको यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग की प्राप्ति करते हैं. वे पुरुष अपने पुण्यों के फलस्वरुप स्वर्ग को प्राप्त हो कर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोग को भोगते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
तीनों वेद ज्ञान-विज्ञान का अथाह सागर है. यही है इनमें विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति के लिये अनेकानेक यज्ञों के विधानों का वर्णन. अत: वेदों के विभिन्न सूत्रों के सूत्रधार तपे-तपाये महान साधक स्थितप्रज्ञ वैज्ञानिक योद्धा साक्षात ब्रह्मरूप थे, इसलिये महान पवित्र वेदों के मंत्रों को ब्रह्माश्त्र माना गया है. यह है भारत का महान विज्ञान सागर. तुम जो चाहो प्राप्त कर सकते हो, यह थी की भगवान और आप के
बीच कोई दूरी नहीं है. इस स्तर की प्राप्ति के लिये तुम्हें लगन तथा तल्लीनता चाहिये और यह तब तक नहीं होगा जब तक तुम्हारी कोशिका उस दिशानमुख न हो अर्थात वह टेढ़ा-मेढा पाप-युक्त न हो यही है, हृदय की पवित्रता और श्रृंखला-प्रतिक्रिया
के लिए यूरेनियम की शुद्धता. यही होता है असंख्य सकाम कर्मों को पाप रहित पुरुषों द्वारा विभिन्न यज्ञों-साधनों तपस्यायों के द्वारा सुख-शांति प्राप्ति करना, सुख भोगना तथा स्वर्ग प्राप्त करना. अत: यह लघु अवधि पाठ्यक्रम
के जैसा है मानो
ट्रेनिंग ले ली और जीवन यापन चल रहा है. यह है पूर्ण स्थायी सुख का एक भाग, किसी देवता मिनिस्टर को पकड कर किसी कार्य को करवा लेना.
गंगा कहती है :
वेदों के विधान से संतुलित संयमित नियंत्रित पदार्थों बड़े पैमाने पर आधारित पदार्थों का शक्ति में रूपांतरण का समग्र ज्ञान आज के तुरंत और अत्यधिक-फलदायी विज्ञान आधारित कार्यों से आक्षादित हो धूमिल हो गया है. इसका यह अर्थ है कि होने वाले कार्यो का परिणाम ऊपर नीचे जमीन के भीतर और आकाश में सतही भूजल के गुण मात्रा वेग से कैसे प्रभावित होकर वातावरणीय संतुलंता को किस सीमा तक प्रभावित कर सकता है, इसके सम्मिलित आँकडों को प्राप्त नहीं करना. यही है, गाय से अधिकतम दूध लेना है चाहे इन्जेक्शन डाल कर ही क्यों न हो. बिहार यू.पी बाढ़ में डूबते रहे, फरक्का बैरेज रखना है. 20 हजार हेक्टर गंगा बेसिन उजड़ हो गया परन्तु जमीन से अत्यधिक ऊपज लेना है. अस्सी-नदी नाला बन मिट जाये उसमें अवजल गिराना ही है. गंगा में माल वाहक जहाज चलाना है चाहे ड्रेजिंग करते जाना पड़े आदि यही है, तुरंत फल मिले और खाना आरंभ हो जाये. अत: गम्भीरता से सम्पूर्णता को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक शक्ति स्त्रोतों को संरक्षित करना पहला कर्तव्य होता है.