सत्त्वात्सज्जायते ग्यानं रजसो लोभ ए्व च । प्रमादमोहो तमसोअ्ग्यानमेव च।। गीता : 14.17 : ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
सतोगुण से वास्तविक ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ उत्पन्न होता है और तमोगुण से अज्ञान, प्रमाद और मोह उत्पन्न होता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
सत्तोगुण..वास्तविक ज्ञान, स्थायी-शांति-प्रदायिनी ज्ञान, मैं कौन हूँ का ज्ञान, महा-चेतना जागृत करने का ज्ञान, सर्व-शक्तिमान बिन्दु ब्रह्म का ज्ञान, भीतरी न्यूकलियश का, शक्ति संचय का ज्ञान है. बाहर, संसार के किसी वस्तु की इच्छा, शक्तिक्षय करना रजोगुण कहलाता है और जब यह लगाव-जुड़ाव-आसक्ति स्थायी हो जाए और उस दिशा में शक्ति प्रवाह निरंतरता से होता रहे तो, यह तमोगुण हो जाता है. यही है जन्मजन्मांतर का रोग.
गंगा कहती है...
जो विवेकवान् है, अन्तरंग शक्ति-प्रवाह की तकनीक को समझने वाला है, वही मेरे मौलिक गुणों एवम् आधारभूत चरित्र की रक्षा किस तरह हो, इसे संरक्षित करने का उपाय सोच सकता है. अतः मुझे संरक्षित करने के लिये आत्म-ज्ञान चाहिये. जिसे यह है, वही ज्ञानी सत्त्वगुणी कहलाता है, परंतु वह व्यक्ति जो इस मर्म को नहीं समझता, उसे मात्र अभी के शारीरिक-सुख से मतलब है, वह रजोगुणी है और यदि उसे इस सुख के अतिरिक्त कुछ दिखाई ही न दे, तो वह तमोगुणी है. यही है हृदयस्थ विचार का महान होना, संकीर्ण होना या क्षुद्र होना.
त्याग ही धर्म और तपस्या है :
यही अन्तःस्थल का त्याग, आत्मशक्ति और संस्कार है. प्रो जी.डी अग्रवाल महाशय इस त्याग की साक्षात् मूर्ति थे. वे गंगा के तत्व ज्ञान से सम्पन्न, धर्म के मर्म को जानने वाले भारतमाता के महान पुत्र थे. उन्हें सत्-सत् प्रणाम है.