“यदा सत्त्वे प्रबृद्धे तु प्रलयं याति देहभूत् । यदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते ।। गीता : 14.14 ।।”
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
जब कोई सतोगुण में मरता है तो उसे महर्षियों के विशुद्ध उच्चतर लोकों की प्राप्ति होती है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
जीवन में किये गये समस्त पाप और पुण्य-कर्मों की रिजल्ट-सीट, मृत्यु के समय उसी तरह मानस-पटल पर अंकित होता है, जिस तरह परीक्षा-केंद्र में वही स्मरण आता है, जिसका अभ्यास वर्ष भर किया होता है. अतः मृत्यु के समय में सत्त्वगुण उसी में आयेगा, जिसने दूसरों की छल-प्रपंच रहित, निःस्वार्थ सेवा की हो. निश्चित रूप से ऐसे लोग, मरने के समय में अपने सतगुणी जीवन-कमाई की बहूमूल्य गठरी के साथ, दूसरे बहूमूल्य घर में यानि दूसरे शरीर में प्रवेश करेंगें. यही भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं और यही “शक्ति का अविनाशी सिद्धान्त” है.
गंगा कहती है...
तुम्हारा क्षण मात्र भी यदि हमारे संरक्षण के विषय में यह सोचे कि हिमालय के लूज-तीक्ष्ण ढाल के सेडीमेंट्री रॉक पर ऊँचे-ऊँचे बाँधों के निर्माण से जलाशय अवसादों से तीव्रता से भरेगा. जलाशय के डेड स्टोरेज के जल का घनत्व बढ़ेगा और यह काला और प्रदूषित होगा. इसमें डेंसिटी करेन्ट जेनरेट होंगे जो पूरे जलाशय को दूषित के देंगे. गंगाजल में ऑक्सीजन रखने की क्षमता नष्ट होती जायेगी. अतः गंगा पर जितने ही बड़े बाँधों की संख्या बढ़ेगी, गंगा-जल भी उसी अनुपात में दूषित होता जायेगा और तुम यह भी सोचते हो कि दुष्ट अंग्रेजों द्वारा निर्मित भीमगोड़ा-बिजनौर-नरोरा बैराजों द्वारा निरंतरता से एक के बाद दूसरे से 95% से ज्यादा गंगा-जल का दोहन अवैज्ञानिक और अन्यायपूर्ण है. इन्हें नियंत्रित होना चाहिये, तो, मैं तुम्हारी मृत्यु की घड़ी में, तुम्हारे बिना स्मरण किये हुए, मैं सत्वगुण रूप से तुम्हारे शरीरस्त होकर तुम्हारा ऊद्धार कर दूँगी, यह मेरा दृढ़ निश्चय है.