मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः । सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते ।। गीता : 14.25 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ:
जो मान और अपमान में सम है, मित्र और बैरी के पक्ष में भी सम है एवं सम्पूर्ण आरंभ में कर्तापन के अभिमान से रहित है, वह पुरुष गुणातीत कहा जाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
मान, प्रशंसा, अहंभाव की जागृति, लक्ष्य से विचलित करने वाला शक्तिक्षय कारक है. प्रशंसक इस शक्ति को गलत फायदे के लिए उपयोग करता हैं. अतः यह शरीर की कम्पन्नावस्था को बढ़ाता है. इससे कार्य करने की एकाग्रता में कमी आती है, अतः यह मान-सम्मान, शक्ति और समय का क्षय कारक है और इसकी प्रतिक्रिया बहुत दिनों तक चलती रहती है. अतः मान अहंकार का जन्म-दाता और शक्ति- क्षय का महान कारक है और अपमान को बर्दाश्त करना बहूमूल्य आन्तरिक शक्ति को जागृत करना है. जो इस क्रिया-प्रतिक्रिया को तत्व से समझता है वह मित्र को यदि मान देता है तो बैरी को सम्मान करता है.
जो इस स्तर का ज्ञानी, शक्ति-प्रवाह-तकनीक को जानने वाला है, वह कैसे सोचेगा कि वह किसी कार्य को आरंभ कर रहा है? वह ब्रह्माण्ड में, तरंगायित होते, “सत्व-रज-तम”, शक्ति-तरंगों को निरंतरता से बदलते जानता है, जिनके तहत् ही समस्त कार्य होते रहते हैं. अतः ब्रह्म को जानने वाला गुणातीत द्रष्टा है, अपने को कभी कर्ता नहीं समझता है. यही है मुस्कुराते, प्रमुदित होते, ब्रह्माण्ड के क्रिया-कलाप का अवलोकन करना.
गंगा-कहती है..
यह ब्रह्माण्ड, शक्ति-रूपांतरण के खेल का रंगीन, दिव्य, सुन्दर मैदान है. जितने पदार्थ हैं, सभी खिलाड़ी हैं. यह समस्त खेल, निरंतर बदलती तरंगों वाली शक्ति-समुद्र में हो रहा है. इन तरंगों के प्रवाहों की तकनीक, यदि तम्हें नहीं मालूम तो यह तुम्हें कहाँ-कैसै-कितने जोरों से पटक डालेगा कि तुम चकनाचूर हो मर जाओगे. इसलिये तुम हर परिस्थियों में शक्ति-घेरों को समझा करो. उदाहरण के रूप में, तुम बाँध बनवाते हो, गतिज-ऊर्जा को स्थैतिक ऊर्जा में रूपांतरित करते हो, इसके लिए मिट्टी की पोरोसीटी को पूर्ण रूप से नियंत्रित नहीं कर सके, जो आगे चलकर लैंड-स्लाइड्स या सेडिमेंटस लोड जैसी समस्याओं का कारण बना. अतः डैम बनाने में तुम शक्ति-खेल को नहीं समझ सके. इसी तरह का जल-दोहन कर, भीमगोड़ा-नरौरा-फरक्का को नहीं समझना, माल वाहक जहाज से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को नहीं समझना, यत्र-तत्र वृक्षारोपण कर, सेडीमेंन्टेशन-इरोजन को नहीं समझना, STP कैसे -कहाँ कार्य करता है, इनको नहीं समझना है. ये सभी कार्य, शक्ति-प्रवाह को नहीं समझने के कारण तुम कर रहे हो. अतः गंगा-शरीर-तंत्र, सूक्ष्म से वृहद, के लिये ही उपयुक्त है.
आज-का-मंथन, सोचिए और जबाब दीजिए, हाँ या नहीं में :
क्या अंग्रेजों ने भीमगोड़ा, बिजनौर, नरौरा बैराज भारत की समृद्धि के लिये बनवाया था?