अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रबृद्धा बिषयप्रवालाः। अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।। गीता 15.2।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
इस वृक्ष की शाखाएँ ऊपर तथा नींचें फैली हुई है और प्रकृति के तीनों गुणों द्वारा पोषित हैं. इसकी टहनियां इन्द्रियविषयी हैं तथा इस वृक्ष की जड़ें नीचे की ओर भी जाती हैं, जो मानव समाज के सकाम कर्मों से बँधी हुई हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
संसार वृक्ष की अनन्त विभिन्न शाखाओं में समस्त जीव, रंग-बिरंगी और निरंतरता से बदलती शक्ति-तरंगों से, इच्छारूपी विवशता से चिपके हुए छटपटाते रहते हैं. इस वृक्ष के नीचे की जड़, अज्ञान रूपी इन्द्रिय विषय द्वारा प्रज्वलित भोग-इच्छा है और ऊपर की जड़, ज्ञानमय, भोग की इच्छा का त्याग है. यही है “सकाम कर्म बंधन” से मुक्ति. This is the relinquishment of Adhesive and Cohesive Forces under the Impulsive-Forces of Wisdom. यही है भवसागर में ज्ञानियों की नाव जड़-मूल से, संसार की समस्त वस्तुओं, बंधनों से विरक्ति एवं मुक्ति.
गंगा कहती है :
मैं त्रिपथ गामिनी, वह वृक्ष हूँ, जिसकी जड़ें विष्णु लोक में और पाताल लोक में भी अवस्थित है. इसलिए तुम धारारूप इस गंगा का और ब्रह्म से अवतरित इस ब्रह्माणी के शरणागत हो जाओ या यदि इसे गंगा नदी मानते हो तो जल का सही प्रबंधन करना जानो. दोनों में, अन्तर को समझो ; एक है प्रकृति के साथ ताल-मेल, स्थापित करना और दूसरा है अधिक से अधिक लाभ हासिल करना, इसका दोहन करना. यही है “जड़ का ऊपर होना अर्थात मेरे संवर्धन की व्यवस्था करना और दूसरा जड़ का नींचे होना अर्थात कर्म-बंधन में जकड़ना, मेरा दोहन एवं शोषण करना. यही है एक ऊपर जाने का रास्ता और दूसरा नीचे सकाम-कर्म की ओर जाने का रास्ता. There are two distinct paths of the dealings of the Ganga-System : The One is the Sustainability of the Management , i.e ., the balances between the inflows and the outflows and the other is the doing of the self interested work without taking care of the balances. यही है मेरे जड़ का ऊपर होना, तुम में श्रद्धा और भक्ति का होना और मेरे जड़ का नींचें होना, यानि तुम में श्रद्धा-भक्ति का नहीं होना, तुम में केवल मेरे दोहन की प्रवृति का होना.
दीपावली की शुभकामनाएं :
गंगा, केवल मानव या भारत मात्र की ही नहीं अपितु यह विश्व के विभिन्न असंख्य जीवों को भवसागर पार कराने वाली अमृत की धारा है. इसकी
रक्षा आप पूर्ण वैज्ञानिकता से कैसे करेंगें? यह सुनिश्चित करना होगा, आज गंगा
मिटती और लुप्त होती जा रही है. इस ब्रह्म-दीप को आप अपने हृदयस्थल में अक्षुण्ण
रखेंगें, इसी शुभकामना के
साथ आपकी दीपावली मंगलमय हो.