आब्रह्मभुवनालोका: पुनराबर्तितोअर्जुन ।। मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न बिद्यते : ।। गीता : 8.16 ।।
श्लोक का हिन्दी में अर्थ :
हे अर्जुन! ब्रह्मलोक तक सभी लोक पुनरावृत्ति वाले हैं अर्थात् वहां जाने पर पुनः लौटकर संसार में आना पड़ता है, परन्तु मुझे प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं मिलता.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
इच्छा करना, आवेषित होना थड़थड़ाहट बढ़ाना है. यह कोशिका को तोड़ते हुए शक्ति प्रवाह को बाहर होना होता है. इस प्रवाह के बदले इच्छित वस्तु को भीतर आने को इच्छापूर्ति होना कहते है. यही आणविक संरचना की व्याख्या में मास नम्बर का बढ़ना अर्थात् धन का बढ़ना कहते हैं. मास-नम्बर एटम के केन्द्र में अवस्थित प्रोट्रोन या न्यूट्रॉन किसी के बढ़ने से बढ़ता है. यदि इससे प्रोट्रोन की वृद्धि होती है तो इसी अनुपात में इलेक्ट्रान को बढ़ना होगा, जिसके तहत कंपन तीर्व होगा तथा शक्तिक्षय बढ़ जायेगी. यही है, इच्छा से इच्छा की जागृति का होते जाना और प्रज्वलित आग में घी को डालते जाना. जीवन-दर-जीवन आग में झुलसते जन्म-मृत्यु-चक्र में चक्कर काटते रहते चलना है, परन्तु यदि इच्छा से प्रतिक्रिया स्वरूप प्राप्त वस्तु केन्द्र में अवस्थित न्यूट्रॉन परब्रह्म को समर्पित है तो मास-नंबर की वृद्धि से एटॉमिक नम्बर और इलेक्ट्रोन पर कोई प्रभाव नहीं होता लेकिन कम्पन्न का न्यून होना अवश्यमभावी है. यही है हर एक इच्छा को और इच्छा की पूर्ति कि वस्तु को न्यूट्रॉन परब्रह्म को समर्पित करते जाना. नयूक्लियस में केवल न्यूट्रोन का रह जाना, यही है पूर्ण शांति के स्तर में अपने अशांत-सतर को ला कर शांति से शांति का समन्वय करना, तथा उसके धाम को जाना जहाँ से लौटना नहीं होता.
गंगा कहती है :
नियंत्रित और संयमित बुद्धि के उपयुक्त आवर्ती आयाम और क्रमबद्ध शक्ति प्रवाह धारा को निरंतरता तथा अविरलता से निश्चित बिन्दु पर प्रवाहित करते रहने से तुम जिस तरह महायोगी सिद्ध होते मुक्त होते हो तथा परब्रह्म को कठिनता से प्राप्त करते हो इससे कहीं महान सरलता से मेरी शक्तिजल प्रवाह धारा से मुक्ति पा सकते हो, अत: अदृश्य अवलौकिक विचार धारा से दृष्यावलौकिक प्रत्यक्ष जल धारा मुक्ति पाने का सरलतम उपाय को प्रस्तुत करता है. गंगा माता की आन्तरिक भावना तथा श्रद्धा तुम्हारी कोशिका व्यवस्था को रूपांतरित करके शक्ति सम्पन्न बनाती है. यह है माता के साथ समन्वय स्थापित करना, यह समन्वय भावना से भावना तथा पदार्थ शक्ति-प्रवाह का तालमेल हर समस्या का समाधान भी है, उदाहरण के लिए अवजल को गंगा में निस्तारित करना है तो इसके लिए गंगा से केवल बालू क्षेत्र में ही सही विधि से समन्वय स्थापित किया जा सकता हैं, जिससे तुम्हारा प्रदूषक व्यवस्थित हो और नदी का प्रवाह तीव्र हो. यही भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं. हमसे शांत मन से हम से समन्वय स्थापित कर हमें प्राप्त करो.