राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् ।। प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ।। गीता : 9.2 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा, सब गोपनीयों का राजा, अति-पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फल वाला धर्मयुक्त साधन करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
पिण्ड-ब्रह्माण्ड, चेला-गुरू दोनों यदि निरंतर एक-साथ समस्त विद्याओं की विद्या, समस्त जटिलताओं के कारणों के कारण का निरीक्षण-परीक्षण करते निदान, कम्पन्नावस्था को स्थिरावस्था में लाने की अनूभूति, प्रयोग और निष्कर्ष, निरंतर साथ रहने वाला और सुगम है. अत: शरीर आत्मा-ज्ञान, परब्रह्म, ब्रह्माण्ड तथा विज्ञान है. यही परम शांति प्राप्त करने का परब्रह्म, प्रतिष्ठित, अटल और सुगम एकमात्र सरलतम सिद्धान्त है.
गंगा कहती है :
तुम मेरे विज्ञान की समग्रता को अपने ज्ञान की गम्भीरता से सूक्ष्म विश्लेषण से कुछ क्षण के लिये ही सही करके देखो कि तुम कहाँ और कैसे हो? तुम्हारी जीवन्ता के निर्वहन की न्यूनतम स्थिति की परिस्थितियों को परिभाषित करने वाली सीमा की स्थिति को हमारे लिये क्यों नहीं निर्धारित करते हो? कम से कम यह तो समझो कि भीषण गर्मी के दिनों में जो मेरी न्यूनतम मौलिक प्रवाह होती है, उसे तुम ठंड में तथा मेरे युवा काल में क्यों प्रवाहित होने नहीं देते हो? अभी इस समय में वाराणसी में अस्सी से लगभग दशाशवमेघ-घाट तक का सर्वेक्षण करवाओ और जाकर देखो कि कोई गंध-युक्त अस्सीघाट के काले जल में डुबकी मार सकता है? पर यह लोग कर रहे है. तुम याद रखना जल-सहित समस्त सम्पदाओं को देने वाली माँ को प्यासी रखना वातावरणीय-असंतुलंता का सबसे बड़ा प्रमाण है, अतः इसे अनिवार्यता के साथ अतिशीघ्र सुधारने की आवश्यकता है.