सभ्यता और सांस्कृतिक जागृतियाँ बड़ी नदी के वर्ष-भर के जल की सान्निद्ध और ऊपजाव भूमि में, उच्चस्तरीय नदोत्तर किनारे के स्थान से आरंभ होती है. यह निचले स्तर पर अवस्थित और घिसते रहने वाली नदी के उन्नादोत्तर बालू-क्षेत्र के जल-स्तर की बाढ़़-समस्या और अनुपजाऊ भूमि के कारण नहीं हुई होगी. अत: नदी का नदोत्तर किनारा ही सभ्यता की उत्पत्ति का मूल्यवान स्थान है. यही है..
(1) नदी के नदोत्तर और उन्र्दोत्तर किनारे के स्तर का अन्तर; [the difference in level , the hydraulic gradient (mm)]
(2) मिट्टी और बालू में अन्तर; [difference in co-efficient of permeability (mm/sec), the velocity]
(3) दोनों किनारों के जल की गहराई का अन्तर; नदोत्तर के किनारे, शहर के तरफ नदी की गहराई ज्यादा, वेग न्यून होता है. उस पार, उन्नदोत्तर किनारे पर, गहराई कम और वेग ज्यादा को परिभाषीत करता है.
यही है, “तीन-ढ़ाल”, “तीन-प्राकृतिक शक्तियाँ”, “प्रदूषण-नियंत्रण-व्यवस्था के तीन-सिद्धान्त”. यही है, हाइड्रौलिक ग्रेडियेन्ट द्वारा बिना बाहरी शक्ति का, प्रदूषक को बालू-क्षेत्र में ले जाया जाना और बालू की अवशोषण शक्ति से उसे शुद्ध करना. उसके उपरान्त उसे, एकान्त-स्थान के उच्च वेग में विसर्जित कर देना, नदीके जल-सामर्थ्य को बढ़ा देना. यही है गंगा-प्रदूषण व्यवस्था के तीन-सिद्धान्त, जिसके सहारे न्यूनतम् खर्च से स्थायी रूप से सदा रहने वाली प्रदूषण-नियंत्रण व्यवस्था की जा सकती है.