तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता । भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत ।। गीता : 16.3 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
तेज, क्षमा, धैर्य, बाहर की शुद्धी एवं किसी में भी शत्रु भाव का न होना और स्वयं
में पूज्यता के अभिमान का अभाव ये सब तो हे अर्जुन ! देवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न
हुए पुरुष के लक्षण हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
तेज, प्रकाश, शक्ति को
प्रत्यक्ष होना, कान्तिवान होना कोशिका के रेखांकन से उत्पन्न केंद्र का
प्रकटीकरण है. इस तेज को धारण करना, अपने आपको अलंकृत
करना सीमा में बाँधना विरक्ति को क्षमा
भाव की स्थिति में रहना है. यही है बाहर की शुद्धि
तथा शरीर का रेखांकीकरण. यही परिभाषित
करता है, एकरूपता से शक्ति-प्रवाह सूर्य की रोशनी
की तरह समरूप और निर्लिप्त. यह शक्ति का सीमांकित संयमित
स्वरूप है. यह तेज, क्षमा, धैर्य देवी संपदाओं से उत्पन्न
पुरुष के लक्षण हैं.
गंगा कहती है :
किसी का तेज उसकी शक्ति, सीमा और समय से सीमांकित है. इस सिद्धांत को नजर अंदाज करना भावावेश होकर कार्य करते जाना, मेरी विभिन्न समस्याओं का कारण हैं. वर्तमान में माल वाहक जहाज चलाने की समस्या, इसमें कितने हजार करोड़ रुपये खर्च हो गये और हो रहे हैं पर स्थान और समय से मेरे स्वरूप में परिवर्तन कैसे हो रहा है? इसका अध्ययन नहीं किया गया और अभी भी यह नहीं सोचा जा रहा है कि माल जहाज चलाने से गंगा की पारिस्थितिकी में क्या-क्या आमूल परिवर्तन आयेगा. उसी तरह फरक्का बैरेज में कैसे सुधार लाया जाये, जो विशेष रूप से बिहार के बाढ़-कटाव को बहुत प्रभावित करती है, उसे नियंत्रित किया जा सके. यही है गंगा को सम्पूर्ण रूप से संरक्षित करने के लिये “महामना मालवीय इंस्टिट्यूट आँफ टेक्नोलॉजी फॉर दी गंगा मैनेजमेंट” का होना.