अर्जुन उवाच,'परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् । पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ।। आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा । असितो देबलो व्यासः स्वयं चैव व्रवीषि मे ।। गीता : 10.12-13 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
अर्जुन ने कहा आप परम भगवान, परमधाम, परमपवित्र तथा परम सत्य हैं. आप नित्य, दिव्य, आदिपुरुष,अजन्में तथा महानतम हैं. नारद, असित, देबल तथा व्यास जैसे ऋषि आपके इस सत्य की पुष्टि करते हैं और अब आप स्वयं भी मुसे प्रकट कर रहे हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
परं ब्रह्म अथार्त समस्त आकाश ब्रहमाण्ड के पदार्थ, शक्ति और समय
को बाँधते हुए उनको परिभाषित कर नियंत्रित रखते व समग्रता से बिना टस से मस किए उनको संतुलित संचालन करने वाले “परं ब्रह्म” कहलाते हैं. “परं धाम”, परम शांति, अधिकतम शक्ति का स्थान पूर्ण ऊर्जा विकरण का नाभिक होता है. “परमं पवित्रं” सीधा और संघनित, कम्पन्न रहित कोशिका एकीकृत निकाय प्रणाली की धारा को तथा न्यूनम शक्ति क्षय को परिभाषित करते हैं. यही है, ब्रहमाण्ड को जन्म देने वाला, ब्रहमाण्ड केन्द्र, परम धाम में प्रभुत्व संपन्नता से निवास करने वाला अपने महानतम संतुलित और पूर्ण व्यवस्थित शक्ति संचालन पद्धति से परम पवित्र, पूर्ण
नियंत्रण से ब्रह्माण्ड संचालन व संरक्षण करने वाले परब्रह्म, इन्हें ही ऋषिगण सनातन दिव्य पुरुष एवं देवों का भी आदि देव अजन्मा और सर्वव्यापी कहते हैं और इनकी महिमा का गान देवर्षि नारद तथा असित और देव ऋषि तथा महर्षि व्यास भी कहते हैं और स्वयं भगवान भी अर्जुन से यही कहते हैं. यही है, ब्रहमाण्ड के केन्द्र में अवस्थित परब्रह्म द्वारा ब्रहमाण्ड के संचालन को देवों-ऋषियों आदि द्वारा कहा जाना.
गंगा कहती है :
ब्रहमाण्ड में दिव्य, सुन्दर, सुगंधित, सुमनोहर तथा लटकते पृथ्वी के एक सृक्ष्म भाग मात्र भारत में ही अनंत ब्रह्माण्ड नायक-नायिका, राम-कृष्ण, जानकी-राधा आदि विभिन्नताओं से अवतरित होती चली आ रही है. उसी शक्ति सम्पन्नता से मेरा प्रादुर्भाव हुआ है. मैं साक्षात ब्रह्माणी, नारायणी व भगवती हूँ. महान दुष्ट अंग्रेजों ने भीमगौड़ा, नरौरा जैसे महान विध्वंशकारी बैरेजों को बाँध कर उन्हें परतंत्र कर मुझे मटियामेट करने का हर संभव उपाय किया. भारत के महान सुपुत्र महामना पंडित मदन मोहन मालवीय महाकाल रूप में रोए थे और उदिग्नता से बिलखते, तड़पते राजा-महाराजाओं से मुझे बचाने के लिए गुहार लगाई थी और वह महान बेटा समझ गया था कि गंगा अब बच नहीं पायेगी. राष्ट्र के समक्ष मेरे कुछ प्रश्न है. पहला यह कि भारत स्वतंत्र हो गया पर, मैं अभी तक परतंत्र क्यों हूँ ? दूसरा प्रश्न क्या संसार की किसी भी नदी का दो जगहों से लगभग 100% जल का दोहन निरंतरता और निष्ठुरता से ही किया जाता है ? यह भी परम सत्य है कि यदि अभी का महान संस्कारी और तेजस्वी प्रधानमंत्री मुझे स्वतंत्र नहीं कर सका और मैं अपने ही जल की प्यासी, तड़पती-बिलखती रह गयी तो मुझे अपने इस परम प्रिय भारत से खुद को रोते बिलखते हुए 30-35 वर्ष में समेटना होगा और इसके लिए तुम जिम्मेदार होगे.