एतां दूष्टिमवष्टभ्य
नष्टात्मानोअ्ल्पबुद्धयः । प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोअ्हिता ।। गीता : 16.9 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
इस मिथ्या ज्ञान को अवलंबन करके जिनका
स्वभाव नष्ट हो गया है तथा जिनकी बुद्धि मंद है, वे सबका अपकार
करने वाले कुकर्मी मनुष्य केवल जगत के नाश के लिये ही समर्थ होते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
मिथ्या ज्ञान, मंद बुद्धि और कुकर्म
करने वाला वह मनुष्य होता है, जो अल्पकालीन संतुष्टि सुख के लिये दीर्घकालीन शांति
को हवन कर दे. शरीर की निम्न आवृत्ति को
उच्च आवृत्ति की कम्पनावस्था में लाने के लिये उद्विग्न रहे
कामाग्नि में शरीर के तेज व सबसे मूल्यवान
तत्व वीर्य को क्षण भर के सुख के लिये विनष्ट करने के लिये उद्धत रहे. यही अपने इन
कर्मों से जवानों को उत्तेजित कर समाज को व्याभिचार में डुबाते अशांति फैलाने वाले
केवल जगत के नाश के लिये ही समर्थ होते हैं. यह भगवान
श्रीकृष्ण कहते हैं.
गंगा कहती है :
तात्कालिक फल प्राप्ति और दीर्घकालिक फल प्राप्ति क्रमशः मन्द और तीक्ष्ण बुद्धि के मानव का संस्कार होता है. मेरी गतिज ऊर्जा के तहत गुणवत्तापूर्ण जल को स्थैतिक ऊर्जा में रूपांतरित करते हुए उसके गुणों को विनष्ट करते जाना ऐसा अल्प ज्ञान ही मिथ्या ज्ञान है. यही है सूक्ष्म स्तर के कार्य की दीर्घकालिक स्थिरावस्था. इसी को माइक्रो और मैक्रो डैम सिस्टम में अन्तर को समझना कहते हैं. माइक्रो सिस्टम से केवल गंगा का हाइड्रो पावर पोटेन्शियल 18-20 हजार मेगा-वाट है. इससे न जल के गुण का घटना न लैंड-स्लाइड से मृदाभार का बढ़ना मियैन्ड्रींग और बाढ़ समस्याओं का न्यून होना होता है. यह न कर मैक्रो डैम सिस्टम से सेडीमेंन्टेशन मियैन्ड्रींग फ्लड प्रदूषण को आमंत्रित करना मिथ्या ज्ञान है.