महर्षयः सप्त पूर्वं चत्वारो मनवस्तथा ।। मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः ।। गीता : 10.6 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
सप्तर्षिगण तथा उनसे भी पूर्व चार अन्य महर्षि एवं सारे मनु व मानव जाति के पूर्वज सब मेरे मन संकल्प से उत्पन्न हैं और विभिन्न लोकों में निवास करने वाले सारे जीव उनसे अवतरित होते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
सप्त महर्षयः अथार्त सात महर्षि, पूर्वे चत्वारः, चार सनकादि तथा मनवः मनु (चौदह) मानव जाति के पूर्वज मद्भावा मुझ भगवान में श्रद्धा भक्ति रखने वाले तथा भगवान से उनके संकल्प से भगवान की शक्ति रखने वाले ब्रहमाण्ड के विभिन्न लोकों के समस्त जीव इन्हीं से अवतरित होते है. भगवान का यह कथन सत्यापित और प्रतिष्ठित करता है कि जिस तरह आकाश में तेजोमय स्थिर एक जैसा प्रकाश देने वाले अन्य आकाशीय पिण्डों से बिलकुल अलग सप्तर्षि तारे हैं, उसी तरह मनु सहित अन्य भगवान के संकल्प से उत्पन्न चौदह आकाशीय पिण्ड और हैं जो ब्रमाण्ड के समस्त शक्ति तरंगों का नियंत्रक अवशोषक, आवर्तक, परावर्तक और संतुलंता से ब्रह्माण्ड के समस्त लोको के अनंत जीवों का प्रतिपालन व संचालन करने वाला आकशीय स्थिर पिण्ड भगवान के 25 सदस्य का स्वनिर्मित ब्रहमाण्ड संचालन मंत्री परिषद है. ये परब्रह्मरूप ब्रह्मात्र चन्द्रमा जैसे अनंत तारों के बीच अवस्थित उपग्रह है. ये ही विभिन्न लोकों में निवास करने वाले सारे जीव के अवतरित होने के मूल कारक हैं. यह सत्यापित करता है कि अनंत जीव शरीर धारक आत्मा परमात्मा से संकल्पित परमात्म रूप है. इससे यह भी सत्यापित होता है कि आकाश में टिमटिमानें वाले अनन्त तारे महर्षितुल्य विभिन्न पुण्यात्माओं का साम्राज्य है. जिनसे आवर्तित परावर्तित होती रहती शक्ति तरंगों की वर्षा जीवों के कल्याणार्थ से निरंतरता से होती रहती है. यही है, आकाश-मंडल में पुण्यात्माओं का संसार.
गंगा कहती है :
मैं गंगा की मौलिकता से भागीरथी अलखनंदा, मंदाकिनी एवं अन्य हिमालय की नदियों को संकल्पित करते तथा समेटते हुए गंगा नाम की मंत्री मंडल बनाते, असंख्य विभिन्न जीवों के समस्त रूप की समरूपता से स्थैतिक और आन्तरिक विभिन्न शक्तियों को जोड़ते विभिन्न बहुमूल्य जीवों के मौलिक कारणों का अनादि कारण हूँ. यह संकल्प आन्तरिक शक्ति का प्रस्फुटन है. अत: मेरी सम्मिलित जीव उत्पन्न प्रतिपालन नियंत्रण शक्तियां नदियों के विभिन्न ढ़ालों से परिभाषित होती रहती है. यही होता है, एक नदी के भूजल और सतही जल को एक साथ दूसरे नदियों से जुड़ने का सिद्धान्त. इस सिद्धान्त से नदियों को जोड़ा जा सकता है. यही है भगवान से संकल्पित सप्तर्षि और गंगा से संकल्पित संगम करने वाली विभिन्न नदियों से समस्त जीवों का पालन व पोषण होना.