वत्कुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।। याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ।। गीता : 10.16 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को सम्पूर्णता से कहने में समर्थ हैं, जिन विभूतियों के द्वारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करके स्थित हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता:
दिव्या ह्यात्मविभूतयः सूक्ष्मातिसूक्ष्म पदार्थीय व्यवस्थाओं पर आधारित, नियंत्रित और संतुलित शक्ति प्रवाह को निरंतरता से ब्रह्माण्ड संचालन
को परिभाषित व सम्बोधित करता है. यह आँख में जैसे एक सूक्ष्म कण के आने से व्यथित सम्पूर्ण कष्ट व्यथा प्रत्यक्षतः प्रदर्शित होती है और इसे कोई दूसरा व्यक्ति नही समझ सकता और न ही इसकी अनूभूति कर सकता है, ठीक उसी तरह सूक्ष्माति सूक्ष्म कण आधारित क्षण-क्षण से होते रहते निरंतरता के शक्ति तरंगों से विभिन्न लोकों के ब्रह्माण्ड के क्रियाकलाप को कोई अन्य नहीं, सिर्फ और सिर्फ परब्रह्म ब्रहमाण्ड धारक ही समझ सकता है. इसी परम तथ्य को अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से कह रहे हैं, जिसके शरीर में सुई की चुभन होगी उसको ही दर्द की अनूभूति होगी. इसी तरह जिसका ब्रहमाण्ड जिसका शरीर, वही ब्रहमाण्ड की समस्त क्रियाओं को जानने वाला, समझने वाला और कहने वाला हो सकता है. यही है, ब्रह्म द्वारा ही ब्रहमाण्ड के क्रियाकलापों को कहना.
गंगा कहती है :
आत्मस्त, समस्ता से केन्द्रित शक्ति प्रवाह रूप, प्रार्थना से आह्लादित गंगा शक्ति-तरंगों से अपनी शक्ति तरंगों को मिलाते हुए पंडित राज जगन्नाथ ने अप्राकृतिक मेरी गंगा की धारा को करते हुए यह सत्यापित कर संसार को इस कलिकाल में सत्यापित किया था कि गंगा की अनंत शक्ति को मात्र गंगा ही नहीं उसका पंडित राज जैसा बेटा भी समझ सकता है. यही श्रद्धा चेतना गंगा को संरक्षित कर सकती है. यही है गंगा ही गंगा को सूष्मता से जानती है.