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गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – शारीरिक विज्ञान की भांति समझा जाए नदी विज्ञान को. अध्याय 18, श्लोक 11 (गीता : 11)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • May-13-2019
न ही देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः। यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते ।। गीता : 18.11 ।।

श्लोक का हिन्दी अर्थ :

निःसंदेह किसी भी देहधारी प्राणी के लिए समस्त कर्मों का प्रत्याग कर पाना असम्भव है. लेकिन जो कर्म-फल का त्याग करता है, वह वास्तव में त्यागी कहलाता है.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

शरीर में अन्न, जल व वायु और विभिन्न शक्तियों के बीच में रासायनिक प्रतिक्रियाएं निरंतरता से वातावरण से ऑक्सीजन लेने छोड़ने की बाध्यता से होती रहती है. यही कार्य आणविक संरचना में आर्बिटल के इलेक्ट्रान करते हैं. न्यूक्लियस में अवस्थित प्रोटोन और न्यूट्रॉन कुछ भी नहीं करते. यही है शरीरस्थ आत्मा और परमात्मा का कुछ भी नहीं करना. इस ज्ञान की दृढ़ता यह सत्यापित करती है कि आत्मा समस्त कर्मों में कर्म से निर्लिप्त रहती है. यही है वास्तविक त्यागी होने का आधार, मैं कुछ नहीं करता, उसकी अध्यक्षता में प्रकृति कार्य करती है.

(23) स्थित-प्रग्य भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ‘कर्म-योगी हैं?

गीता (5.22 ) में प्रतिष्ठित करती है कि इन्द्रीय तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले जो भोग हैं यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख रूप भाते हैं तो भी दुःख के ही हेतु हैं और आदि अंतवाले अनित्य हैं. इसलिये हे अर्जुन ! बुद्धिमान विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता. इसी लय में कवि कहता है माँ ! यह याचना नहीं, मुझे कुछ भी मांगना नहीं है मुझे तो इस जगत को जोड़ने वाली अप्रतिम प्रेम सृष्टि को प्राप्त करना है. मेरे मन की यह प्रेम सृष्टि ‘स्व’ के साथ नहीं ‘त्वम’ के साथ सर्जन पाती है. ‘त्वम’ के साथ ही विलीन होती है और इसलिये प्राप्त करना है यह भाव जगत्. प्रतीक्षा की वेदना मुझे स्वीकार है. प्रतीक्षा की प्यास मुझे इच्छित है. प्रतीक्षा का दर्द मेरी गति है. प्रतीक्षा का मौन मेरी साधना है. प्रतीक्षा का अंधापन मेरा सृजन है. प्रतीक्षा की विह्वलता मेरा सौन्दर्य है. प्रतीक्षा की प्रतीक्षा मेरी कामना है. इसलिये तो माँ तेरे प्रदत्त हर पल के लिए कोई उपालंभ नहीं है. यह है, महान त्यागी पुरुष भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की आत्मस्त भाव का शीर्ष. अतः वे स्थित प्रग्य कर्म-योगी हैं (पुस्तक-साक्षीभाव, पेज-45 )

गंगा कहती है :

कर्म फल त्याग को समझना केंद्र की संरचना उसकी शक्ति और उसके कार्य को समझते हुए समस्त कार्यों में उसकी निर्लिप्तता को समझना है. कोशिका की समस्त क्रियाकलापों को जैसे न्यूक्लियस की संरचना से उससे होने वाले पदार्थ और शक्ति के अन्तः तथा बाह्य प्रवाहों से शरीरस्थ समस्त कर्म-विधियों को विधिवत समझा जा सकता है, उसी तरह हमारी समस्त कार्यविधि, हमारी समस्याएं और इनके सरल निदान को हमारे जगह और समय से निरूपित ‘केन्द्रों के केन्द्र को समझ कर किया जा सकता है. यही है बाढ़, कटाव व प्रदूषण आदि नदी समस्याओं के निदान को एक साथ न्यूक्लियस की व्यवस्था से व्यवस्थित करना.

 

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