एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः ।। सोअ्विकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ।। गीता : 10.7 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
जो मनुष्य मेरी इस विभूति को और योग सामर्थ्य को तत्व से जानता है और दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर लेता है, वह संदेह-रहित भक्ति योग से युक्त हो जाता है.
श्ल़ोक की वैज्ञानिकता :
मम विभूतिं योगं च अथार्त मेरा परमेश्वर्य रूप विभूति और योग शक्ति परमात्मा के संकल्प मात्र से महर्षियों-मनुओं का उत्पन्न होना, ब्रहमाण्ड का निर्माण करके समस्त लोकों के जीवों का प्रतिपालन और संचालन होना परमेश्वर की विभूति और उनकी योग शक्ति है. अतः जिस किसी ने भी दृढ़ता से संकल्पन कर यह हृदयस्थ कर लिया हो कि वह परब्रह्म के शरीर ब्रह्माण्ड में परमात्मा द्वारा संकल्पित है वही जीवात्मा है जो परमात्मा स्वयं है, तब उसकी समस्त जीवन धारा सत्य, शक्ति, शांति पथ का राग द्वेषादि रहित चिदानन्दरूप शिवोहम-शिवोहम का हो जाना अवश्यमभावी है. यही है, परमेश्वर की विभूति और योग शक्ति को तत्व से जानते हुए भी निश्चल भक्ति योग से युक्त होना. यही है, शांति जीवन सभी लोगों के लिए बराबर की अवधारणा, सर्वे भवन्तु सुखिन: का भारतीय वैदिक पौराणिक मंगलमय जीवन का मूलमंत्र.
गंगा कहती है :
मेरी मौलिक धारा भागीरथी की सबसे अधिक स्थैतिक ऊर्जा के तहत सबसे नीचे स्तर की उसकी सतह तीव्रता से सूद्धतम और अधिकतम भूजल का प्रस्फुटन, लम्बाई और चौड़ाई से दिशा की तीव्रतम ढ़ाल के तहत यमुना, सोन, कोशी, गंडक व ब्रह्मपुत्रा आदि हमसे जुड़ती व संगम करती नदियों सहित बढ़ती बदलती चलती भूजल की प्रवाह को मूलता से जो लोग जानते हुए मेरे औषधीय जलगुण को चारित्रिक मृदा भार वहन को मिट्टी, बालू, कटाव व जमाव को बाढ़, मियैन्डरींग, प्रदूषक, फैलाव व जमाव आदि के मेरे विभूति और योगशक्ति को तत्व से जानता है वह मुझसे निश्चल भक्ति योग से युक्त होते हुए प्रतिध्वनि स्थापित करता हुआ ही निश्चिंतता से कार्य करेगा.