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गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – नदी प्रबंधन की मौलिकता को नहीं समझना ही नदियों की समस्या है. अध्याय 18, श्लोक 18 (गीता : 18)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • May-20-2019
ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना । करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसंग्रहः ।। गीता : 18.18 ।।

श्लोक का हिन्दी अर्थ :

ज्ञान, ज्ञेय तथा ज्ञाता ये तीनों कर्म को प्रेरणा देने वाले कारण हैं. इन्द्रियाँ (करण), कर्म तथा कर्ता - ये तीन कर्म के संघटक हैं.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

ज्ञान से कार्य होता है  इसलिये ज्ञान शक्ति है. यह ज्ञान वायु में नहीं किसी व्यक्ति में होगा इसलिये इसका धारक चाहिए. इस ज्ञान शक्ति का उद्देश्य होगा इसलिये इसकी प्रवाह दिशा और लक्ष्य बिन्दु की आवश्यकता है. इसे ज्ञेय कहते हैं. अतः ज्ञान-ज्ञाता-ज्ञेय, ये कर्म के कारक ‘कर्म-प्रेरणा’ हैं. इनके द्वारा कार्यान्वयन के लिये कार्य करने वाला कर्ता, कार्य करने का सामान (इन्द्रियाँ) और कार्य करने की विधि की आवश्यकता है. इन तीनों को ‘कर्म-संग्रह’ कहते हैं. अतः ‘कर्म-प्रेरणा’ और ‘कर्म-संग्रह से कर्म होते हैं.

(28) स्थित-प्रग्य भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ‘महान कर्मयोगी हैं कैसे ?

गीता (5.27-28) प्रतिष्ठित करती है कि विषय भोगों से निवृत रहने वाला नेत्रों की दृष्टि को दो भोहों के मध्य स्थित रखते हुए नासिका में विचरने वाले प्राण और अपान वायु को सम करने वाला अर्थात पूर्ण  रूप से इन्द्रियों मन बुद्धि को अपने भीतर समेटने वाला ही स्थित-प्रग्य रहते हुए ‘कर्मयोगी’  हो सकता है. कवि ‘साक्षीभाव’ के प्यारे पाठक मित्रों से कहता है कि 1980 के दशक में अपनी डायरी की पन्नों पर लिखी अपने अंतर्मन की अनुभूतियों की सघन अभिव्यक्ति करता है. कवि कहता है कि ‘हृदय की गहन पीड़ा आपको इन कविताओं में बहती मिलेगी. मेरा यह प्रयास सायास नहीं , अनायास है. अन्तरमन से निकला हुआ. आहद नहीं, अनहद सा. आहद होता तो किसी आघात की परिणति से पैदा होता. उसे गानें , सुनने और सुनानें की तीव्र इच्छा होती. अनहद इसलिये, क्योंकि यह आत्मा की नीरवता से उपजा है. न किसी को सुनाने की इच्छा न बताने की. अतीत में मंथन करते रहने के कारण मुझमें एक अच्छी आदत का विकास हुआ था. नियमित रूप से जगजननी माँ को पत्र लिखने की अपने अन्तर को प्रकट कर माँ शक्ति के चरणों में रखकर अपने मन को खोलने की आदत हो गयी थी, यही है ’ध्यान’ के बीज से उत्पन्न ‘ज्ञान’ यह कभी मिटता नही. यह कितने ही जन्मों की संकलित शक्तिरूप ज्ञान पुंज है. इस बहूमूल्य सम्पदा से विभूषित हैं, भारत के महान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी.

गंगा कहती है :

हमारे ‘ज्ञाता-ज्ञान और ज्ञेय कर्म-प्रेरणा अर्थात ज्ञानपुंज की उपयोगिता को तथा ‘कर्ता-करण-क्रिया कर्म संग्रह को अर्थात कर्म के परिणाम को निरूपित करता है. अतः यह ‘रिवर प्लानिंग एंड मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी है. प्लानिंग किसकी?  जिसकी उसके शरीर-संरचना के ज्ञान का अभाव. इस ज्ञान का उद्देश्य बाढ, कटाव व प्रदूषण समस्याओं का निदान इनका अभाव होना. अतः नदी प्रबंधन के मौलिकता की मौलिकता को नहीं समझना ही ‘नदी-कर्म-प्रेरणा’ और ‘नदी-कर्म-संग्रह’ को नहीं समझना है.

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