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गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – नदियों का स्वरुप कल्याणकारी है. अध्याय 18, श्लोक 7 (गीता : 7)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • May-07-2019
नियतस्य तु संन्यासः कर्मणो नोपपद्यते । मोहात्तस्य परित्यागस्तामसः परिकीर्तितः ।। गीता : 18.7 ।।

श्लोक का हिन्दी अर्थ :

निर्दिष्ट कर्तव्यों को कभी नहीं त्यागना चाहिए. यदि कोई मोह वश अपनें कर्मों का परित्याग कर देता है, तो ऐसे त्याग को तामसी कहा जाता है.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

ब्रह्मांड के समस्त सूक्ष्म और वृहद पदार्थों की रचनाओं की अपनी मौलिकताएं होती है. ये रचनाएं इनके विभिन्न समय और स्थान की प्रतिक्रिया त्मक परिणामी शक्ति की तथा इस शक्ति के प्रवाह दिशा और  गन्तव्य स्थान को परिभाषित करता है. यही है निर्दिष्ट कर्म, वह कार्य जो सामान्य चरित्र के तहत किया जाए. इस कर्म उद्देश्य को किसी खास भीतरी या बाहरी परिस्थितियों से ध्वन्यात्मक से, मौलिकता से भटका दिया जा सकता है अर्थात इसका गन्तव्य स्थान व कार्य बदल सकता है, ऐसे त्याग के अंतर को तामसी कहा जाता है. यही है, ‘आये थे हरि-भजन को औंटन-लगे-कपास’.

(19) स्थित-प्रग्य और कर्म-योगी भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी:

गीता (5.14-15) में भगवान श्रीकृष्ण कर्म-योग की व्याख्या बतलाते हैं कि परमेश्वर मनुष्यों के न तो कर्तापन को  न ही कर्मों की और न कर्म-फल के संयोग की ही रचना करते हैं और न किसी के पाप कर्म को और न किसी के शुभ कर्म को ग्रहण करतें हैं, किन्तु अज्ञान के द्वारा ज्ञान ढका हुआ है, उसी से सब अज्ञानी मनुष्य मोहित हो रहें हैं. इस अज्ञान से हजारों मील दूर कवि ले जा रहा है और अपने अन्तःकरण से उद्घोषित कर रहा है ‘अन्दर से किसी का सहारा है तो वह एकमात्र श्रद्धा का और तीव्र प्रतिक्षाओं का. प्रतीक्षा का पल कवि के लिये ‘स्व’ में रस नहीं, सर्व में रस है और वह कहता है ‘मुझे तो जगत को भावनाओं से जोड़ना है. मुझे तो सबकी वेदना की अनूभूति करनीं है, मुझे तो अपनेपन के अस्तित्व की आहुति देनी है, तभी तो कहता हूँ, मुझे ऐसी तीव्रता सर्वकाल के लिये क्यों नहीं मिलती? देख न माँ ! प्रतीक्षा के पलों की बात भी मेरे अंतर्मन को कितना विह्वल कर रही है’। (पुस्तक साक्षीभाव नरेन्द्र मोदी, पेज-12 ) यही हैं ‘सर्व कल्याण भाव को अन्तःस्थल में रखने वाले विभिन्न देशों के सर्वश्रेष्ठ नागरिकता पुरस्कार प्राप्त करने वाले देश के जन-जन के हृदय वासी भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी.

गंगा कहती है :

मेरे नियत कर्म स्वरूप, मेरे अवतरित होने का बहुयामी उद्देश्य, सगर पुत्रों का उद्धार के संग, तपोभूमि और विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाने वाले इस भारत को मात्र धर्म ज्ञान केंद्र नहीं जीवन उद्देश्य मुक्ति दिलाने वाली तीर्थस्थली बनाने के लिये आयी हूँ. तुम मेरे इस नियत कार्य को विस्मित कर अपनी मूढ़ स्वार्थ सिद्धि ‘अर्थ-उपार्जन’ के लिये, श्रद्धा, भक्ति, ज्ञान व ध्यान को तख्खा पर रख अपनें आप को नरक में धकेलनें का ‘तमोगुणी’ कार्य कर रहे हो.

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