The Ganges
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गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – नदियों के जल गुण का नष्ट होना सर्वत्र अशांति का कारण है. अध्याय 17, श्लोक 15 (गीता : 15)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • April-02-2019
अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् । स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वांग्मयं तप उच्यते ।। गीता : 17.15 ।।

श्लोक का हिन्दी अर्थ :

जो उद्वेग न करने वाला प्रिय और हितकारक एवं यथार्थ भाषण है तथा जो वेद-शास्त्रों के पठन का एवं परमेश्वर के नाम जप का अभ्यास है, वही वाणी सम्बन्धी तप कहा जाता है.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

उद्वेग न करने वाला प्रिय हितकारक यथार्थ भाषण की अवधारणा, कोशिका की कम्पनावस्था को स्थिरावस्था में लाती है. यही है, कोशिका को स्थिर करना, शरीर से निरंतरता से होते रहते शक्ति क्षय को नियंत्रित करना ‘तप’, शांति प्राप्त करना कहलाता है. वेद शास्त्रों का पठन और परमेश्वर के नाम का जप ध्वनि तरंगों को श्रद्धा के तहत, आत्मनोंमुख करते हुए हृदयस्थ शांति केन्द्र को परिलक्षित करता है. इस जप की बारंबारता कोशिका की जड़ता की प्रवृत्ति को लचीलापन में रूपांतरित करती रहती है. जप की दृढ़ निरंतरता से कोशिका, ब्रह्म हृदयस्थ शांति केन्द्र की दिशा में स्थिर हो जाती है. यही है, आनंदानंद में डुबना. मीरा, महान शिवभक्त कविश्वर विद्यापति वाणी तप की सिद्धि प्राप्त की थी.

गंगा कहती है :

उद्वेग न करने वाला हितकारक यथार्थ भाषण के ओज को हृदयस्थ करना मेरे मौलिक जल का गुण है. इसी जल के साथ वायु, मृदा, आकाश और शक्ति के संतुलित समागम से निर्मित चरित्र के तहत लोग वेद शास्त्रों का पठन और परमेश्वर के नाम जप के अभ्यास से समस्त सिद्धियों के साथ वाणी-सिद्धि  ‘जो कहा वह हुआ’ , आसानी से प्राप्त करते थे. वे अपनी ध्वनि तरंगों से जल की आणविक संरचना को बदल कर इच्छित फल प्राप्त करते थे. इस जल गुण का नष्ट होते जाना ‘वाक्य-प्रदूषण’, झूठा आचरण ही सर्वत्र अशांति का कारण है. 

गीता (2.57) कहती है, भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी स्थितप्रग्य हैं :

व्रत में रहते हुए अपनी मौलिक भारतीयता को दृढ़ता से आत्मस्त रखकर अमेरिका सहित अन्य समृद्ध देशों में भ्रमण करते हुए अपने समस्त इन्द्रियों को पल-पल के कठोर नियंत्रण में अपनी मौलिकता की सम्पूर्णता से आवद्ध रख कर किसी देश की किसी चीज से स्नेह रहित रहते सफलता और असफलता की तृणमात्र भी ध्यान में नहीं रखते, अपने कर्तव्य को मात्र कर्तव्य समझते, अपने देश की सभ्यता संस्कृति धर्म आचरण के ब्रह्मत्व का अमिट-छाप छोड़ते, उस देश के हृदयस्थ में अपना तिरंगा फहराते,  डंका पीटकर लौटने वाला भारत का इकलौता बेटा भारत का प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ‘स्थितप्रग्य’ हैं.

 

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