सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन । अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम् ।। गीता : 10.32 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
हे अर्जुन मैं समस्त सृष्टि का आदि, मध्य और अन्त हूँ. मैं समस्त विद्याओं में अध्यात्म विद्या हूँ और तर्क शास्त्रियों में मैं निर्णायक वाद हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
समय काल से प्रतिष्ठित ही शरीर का बचपन, जवानी और बुढ़ापा है. इसी तरह काल से परिभाषित काल
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग और सृष्टि का आरंभ मध्य अन्त है. अतः समय के भीतर समय उसी तरह है, जिस तरह शरीर के भीतर उसका अंग होता है और अंग के भीतर टिश्यू आदि होते हैं. यही है, सृष्टी काल सम्बन्ध, सृष्टि का आरंभ बचपन सुखद छलप्रपंच रागद्वेष से दूर सतयुग है. जीवन का आरंभ, सृष्टि का आदि. सृष्टिमध्म, त्रेता, द्वापर में पवित्र लड़ाई राम-रावण, कौरव-पाण्डव युद्ध, सृष्टि का अंत,
बुढ़ापा, कलयुग, कष्ट रोगव्याधि अंत है. यही है, ब्रह्म का, सृष्टि का आरंभ मध्य और अंत का होना. समस्त विद्या ब्रह्माण्ड के विभिन्न आंदोलित तरंगित वस्तुओं की तरंगों की प्रकृति को जानते हुए उनका एक दूसरे से सम्बन्ध का विश्लेषण करते वातावरणीय संतुलंता के तहत अपने को शांत रखते, दूसरों को शांत रखने की तकनीक को ही विद्या कहते हैं. ब्रह्माण्ड के समस्त पदार्थौं के कम्पन्न में नव द्वारों वाले और मन बुद्धि संयोग वाले मानव शरीर की आत्मा केन्द्र के जटिल कम्पन्न नियंत्रण को समझ पाना कठिन है. यही है,
ब्रह्म की विद्याओं में अध्यात्म विद्या का होना और किसी विषय के बाद प्रतिवाद में शक्ति प्रवाह की प्रवलता से कोशिकाओं को रेखांकित करते स्थिर करना ही परब्रह्म रूप वाद है.
गंगा कहती है :
सृष्टि का अर्थ समुद्र का खारा जल नहीं, नदी का पंचतत्वी जल का होना है. अतः नदी जलगुण वातावरणीय गुण इसके शक्ति का द्योतक है. सृष्टि आदि जल का आरंभिक स्तर पूर्ण पवित्र जल का प्रस्तुतिकरण है. सृष्टि का मध्य कम शुद्ध जल और सृष्टि का अन्त कम शुद्ध जल अर्थात् प्रदूषित जल का बोध कराता है. अतः नदियों का जलगुण ही सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग का सम्बोधक है. यही है, गंगा जन्म गंगा दशहरा मई से अगस्त तक जल का सबसे शुद्ध होना है. सावन के जल का शुद्धतम होना, भोले नाथ का यह जल सबसे प्रिय होना है. सितम्बर से दिसम्बर नदी का मध्यकाल जवानी का काल, बाढ़ का काल, सेडीमेन्ट और ऑक्सीजन से परिपूर्ण शक्तिशाली जल होता है. जनवरी से अप्रैल तक नदी का अन्तकाल, सबसे कम ऑक्सीजन का जल होता है. विद्याओं में, मैं अपनी आत्मविद्या, नदी विद्या हूँ. यह नदी प्रकृति और जल की गतिशिलता का सम्मिलित ज्ञान है. अत: यह वनस्पति और जीव विज्ञान तथा अन्य विज्ञान नही है. गंगा व्यवस्था सम्बन्धी वाद-विवाद मुझे अत्यन्त प्रिय है, क्योंकि इससे हमारी समस्या का निदान उभरकर आता है.