अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् ।। साधुरेव स मनतब्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ।। गीता : 9.30 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
अगर कोई दुराचारी से दुराचारी भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिए कारण यह है कि उसने दृढ़ता से निश्चय कर लिया है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक अथार्त अपने भीतर से आंदोलित हृदय को बलपूर्वक स्थिर रखने का प्रयास करते हुए दूसरों को और वातावरण को निरंतरता से आंदोलित करने में प्रयासरत मात्र स्वयं को संतुष्ट करने वाला पुरुष “चेत्सुदुराचारो” दुराचारी से दुराचारी कहलाता है. ऐसे स्वार्थी संकुचित व्यक्ति की कोशिकायें टेढ़़ी-मेढ़ी विकृतियों से भरी पड़ी निरंतरता से बदलते शक्ति तरंगो की आवृतियों एवं आयामों से वातावरण का प्रेत बना रहता है. ऐसा मानव रूप प्रेत “मामनन्यभाक: का सीधा संघनित दृढ़ कोशिका वाला भीतर से मजबूत केन्द्र वाला परब्रह्म का एकाएक अनन्य प्रेम से भक्ति करने वाला कैसे हो सकता है? यही है, एक ना एक दिन तीक्षण गति से प्रवाहित हो रहा होता है. अशांत
ऊर्जा को ठोकर पर ठोकर लगने से गिरते पडते रहने से घर्षण शक्ति की अवस्था समय से बढ़ते जाने से प्रवाह ऊर्जा में रूपांतरित होने जाना और सत्य को दृढ़ता से पहचान पाना, एफ ऑर्बिटल पर कम्पन्न को त्यागते डी,
एफ, एस ऑर्बिटलस को पार करते हुए केन्द्र को मजबूती से पकड़ लेना. “तुम्हीं हो माता, पिता तुम्ही हो” को समझते अनन्य भक्ति भाव का साधु हो जाना. यही है, “साधुरेव स मन्तव्य” यही था, “अजामिल” और यही हैं कतिपय अनेक लोक. यही है, अतिशय दुराचारी को भी अन्ततः चाहे कुछ क्षण के लिये ही क्यों न हो ज्ञान ध्यान में आते हुए भी हाथ मलते जाना. जो थोड़ा भी पहले जगा, वह साधु बन गया.
गंगा कहती है :
तुम्हीं कहो कि तुम्हारे लिए अतिशय दुराचारी कौन होगा? क्या तुम्हारे शरीर को निर्दयता से अंग-भंग करने वाला अवैज्ञानिकता और स्थायी अनियंत्रता से, अन्तः एवं बाह्य शक्ति और पदार्थ की असंतुलंता की समस्त सीमाओं को पार करने का कारक एवं अन्य विभिन्न रूपों से शोषण करने वाले को तुम सुदुराचारी से सम्बोधित नहीं करोगे ? यही हैं, गीता से सुदुराचारी परन्तु यदि किये गये और हो रहे विभिन्न आधारभूत त्रुटियों को, देश और विश्व के जाने माने नदी विशेषज्ञों की सहायता व उनके राय विचार से समुचित संतुलित तरीकों से परिवर्तन किया जाए तो यह साधुवादिता होगी. यही भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि गलतियों को भक्ति में रूपांतरित करने वाला साधु होता है.