आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः । यग्यस्तथा दानं तेषा भेदमिमं श्रृणु ।। गीता : 17.7 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
भोजन भी सबको अपनी-अपनी
प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का प्रिय होता है और वैसे ही यज्ञ, तप और दान भी तीन-तीन प्रकार के होते हैं. उनके
इस पृथक-पृथक भेद को तू मुझसे सुन.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
भोजन की रूचि, शरीर में
वस्तु विशेष के प्रति आकर्षण, झुकाव, कोशिका की व्यवस्था इसके आकार, प्रकार व झुकाव पर निर्भर
करता है. यह ‘इच्छा’ का पदार्थीय रूप में
रूपान्तरण होना है. यह विज्ञान के अभी तक के पहुँच से बाहर का तथ्य है. कोशिका की
यह सूक्ष्म व्यवस्था ऊर्जा के प्रवाह के अवशोषण, अवधारण और विकिरण को जन्म से शरीर में रहना और मृत्यु के
उपरांत समस्त कर्मों की गठरी-पोटरी को समेटते शरीर को त्याग देना ही ‘कार्य शक्ति’ है और यह अविनाशी है इस सिद्धांत को प्रतिष्ठित करता है. यही है अदृश्य सूक्ष्म शरीर
का माइक्रो चिप, प्राण और इसका धूंधाकार आमंडल, यग्य, दान व तप के तीन स्वरूपों का
शरीर से निकलना. इस सूक्ष्मता से और समय से इच्छा पूर्ति की व्यवस्था शरीर के
संरचना की, स्वरूप के भिन्नता का होना होता है. यह समझ पाना मानव के ज्ञान की परिधि से बाहर
की बात है. अतः कोशिका का स्वरूपीय चरित्र विभिन्न शक्तियों और उनकी संचालन विधि समय
आदि की व्याख्या करता है. इतना सूक्ष्म ‘टेप-रिकॉर्डर’ है कोशिका व्यवस्था, यज्ञ, तप व दान
के विभिन्न मन स्थितियों को पढ़ कर रिकॉर्ड करने वाला.
गंगा कहती है :
मेरे चारित्रिक गुण को खासकर जल के आणविक संरचना को, मेरे जल के हाइड्रोजन
ऑक्सीजन के जुड़ाव सम्बन्ध को, इनके तहत मेरे जल के विभिन्न गुणों को, तुम किसी
प्रयोगात्मक विधि से विश्लेषण नहीं कर पाओगें इसके कारण मेरा जलगुण तुम्हारे भावना रूपी तरंग से प्रतिष्ठित होता
रहता है. यही कारण है कि
करोड़ों श्रद्धालुओं को बाहर से गंदा दिखने वाले जल में स्नान करनें से किसी तरह का
नुकसान नहीं पहुंचता है. अतः भावना प्रधान मैं हूँ. यही है शास्त्रों की देन ‘संस्कार’ भारतीयों में होना. मेरे जीवंतता का कारण भारत के लोगों की मेरे प्रति श्रद्धा ही है. यह बहुसंख्यक की सात्विकी श्रद्धा जब हमारे दोहन और शोषण
से घटकर आधी से कम हो जायेगी तब मैं मन स्थिति को
प्रदूषित करने वाली राजसी स्वभाव की हो जाऊँगी और गंदगी बढ़ते-बढ़ते जब दो तिहाई
लोगों की श्रद्धा मुझसे मिट जाएगी तब मैं तामसी हो जाऊँगी. यही होगा मेरे अन्त का कारण.