सर्वमेतद्भुतं मन्ये यन्मां वदसि केशव ।। न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः ।। गीता : 10.14 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
अर्जुन कहते हैं, हे केशव ! जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं, इस सबको मैं सत्य मानता हूँ. हे भगवन ! आपकी लीला को न तो दानव जानते हैं और न ही देवता.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
लीला, अभिव्यक्ति, क्रियाशीलता, शक्ति प्रवाह यह ऊर्जा विकिरण की पद्धति कहलाते हैं. शक्ति प्रवाह की अनुभूति करना, इसे समझना, इसके साथ तालमेल करना, अपने कम्पन्न तरंग की बारम्बारता, आवृति
को शक्ति तरंगों की आवृति से मिलाना इसे समझना कहलाता है. भगवान की लीला को नहीं समझना तथा भगवान से निस्तारित होती रहती शक्ति तरंगों से अपने शरीर के कम्पन्न के तालमेल को नहीं मिला पाना, ब्रह्म की लीला को नहीं समझना है. भगवान से निःस्वार्थ व निर्लिप्त बिना किसी आवेश के निरंतरता से निस्तारित ह़ोती रहती शक्ति तरंगों को दानव आवेशित उच्च बारंबारता के शक्ति तरंगों को निस्तारित करते रहने वाला और देवताओं की विभिन्न मनोकामनाओं के फल को देने वाले, विभिन्न आवेशित तरंगों को निस्तारित करने वाले होते है. यही कारण है कि भगवान द्वारा निस्तारित होते रहते अनआवेशित एकवर्णी तरंगों को,
देवताओं के आवेशित
एकवर्णी तरंगों और दानवों के उच्च आवेशित
विभिन्न
स्पेक्ट्रम की तरंगें से भगवान के अपरिवर्तित एकवर्णी तरंगों से प्रतिध्वनि उत्पन्न नहीं कर पाता. यही है, भगवान की लीला को देवता और दानव का नहीं जान पाना.
गंगा कहती है :
शिवलिंग स्वरूप महान हिमवान के जटास्वरूप घनघोर जंगल से “ऊँ” की कलकलाती ध्वनि की हुंकार से करालं, महाकाल, कालं तथा कृपालं के मस्तक को सहलाते हुए उन्हें अल्हादित करते, ब्रह्म सहित देवों ऋषियों -महर्षियों और असंख्य योगियों और महान साधकों के कठोर तप से आवेशित भारत के तपोभूमि में शक्ति स्वरूपिणी भगवती के रूप में, विभिन्न नदियों को समेटते, गंगा नाम से नदियों की महारानी भारत धरा धाम के असंख्य जीवों-प्राणियों को समग्रता से प्रतिपालन करते, मुक्ति प्रदान करने के लिए अवतरित हो गयी. इसके इस लीलामय स्वरूप को न तो विभिन्न कारणों लोभों, अहंकारों से इसे नष्ट करने वाले दानव और न ही सांसारिक इच्छाओं से संतृप्त होने वाले देव स्वरूप उच्चधिकारी ही समझ सकते हैं.