आढ़्योअ्भिजनवानस्मि कोअ्न्योअ्स्ति सदृशो मया । यक्ष्ये दास्यासि मोदस्य इत्यग्यानविमोहिताः ।। अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमाबृताः। प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेअ्शुचौ ।। गीता 16 , 15-16
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
मैं बड़ा धनी और बड़े
कुटुम्ब वाला हूँ. मेरे समान
दूसरा कौन है? मैं यज्ञ करूँगा, दान दूँगा और
आमोद-प्रमोद करूँगा. इस प्रकार अज्ञान से मोहित रहने वाले तथा अनेक प्रकार से
भ्रमित चित्त वाले मोह रूप जाल से समावृत और विषय भोगों में अत्यन्त आसक्त असुर लोग
महान अपवित्र नरक में गिरते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
धन और कुटुम्ब शरीर से
बाहर की शक्ति स्त्रोत हैं. ये शरीरस्थ इन्द्रियों से निस्तारित होने वाली विभिन्न
आवृत्ति और आयामों की शक्ति तरंगो से आन्दोलित कोशिकाओं को स्थिरता प्रदान करने में अस्थायी और आंशिक रूप से सहायक तो होते हैं पर कामाग्नि की लपटों से विकृत हुई कोशिका सीधी अपने मौलिक रूप में आ
नहीं सकती इसलिए विषय भोग में तड़पती आत्मा इलेक्ट्रान के कम्पन्न से आवेशित
प्रोट्रोन व न्यूट्रोन परमात्मा के
कारण यह पाप कर्म है इसे समझता हुआ भीतर से उदिग्न व अशांत रहता है. यह भीतरी तूफान बाहर नहीं फैले
इसके लिए आउटरमोस्ट ऑर्बिटल के इलेक्ट्रान की संख्या को प्रोट्रोन मानव कम-न्यून
करने के लिए यज्ञ, दान का दिखावा कर, आमोद-प्रमोद और अपने काम भोग की प्रचंड ज्वाला
को शांत जैसे आशाराम और राम रहीम और लाखों अन्यों की भांति कर सके. यही है, भीतर
कुछ और बाहर कुछ आसुर लोगों का महान अपवित्र नरक में गिरना. यही भगवान श्रीकृष्ण कहते
हैं.
गंगा कहती है :
अंग्रेजों की आसुरी प्रवृति गंगा को नष्ट करने की भावना का परिणाम भीमगोडा और नरौरा बैरेज हैं और टीहरी के बनने का उद्देश्य हाइड्रोपावर जेनरेट करने का नहीं था. फरक्का के बनने का उद्देश्य जल-प्रबंधन नहीं था. अतः इन सबका कारण भावना की अपवित्रता थी. यही कारण था, तकनीकी अन्वेषण का गहराई से नहीं होना. यह सही है कि ये गलतियां हुई पर इनमें अभी भी सुधार का नहीं होना उनसे भयावह गलती है. सेडीमेन्टेशन, इरोजन व प्रदूषण इन पर नियंत्रण नहीं होना ही अशांति और दुःख का कारण है. यही है, आसुरी स्वभाव.