मन्मया भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।। मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः ।। गीता : 9.34 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
मुझ में मन रमाने वाला हो, मेरा भक्त बन मेरा पूजन करने वाला हो मुझको प्रणाम कर, इस प्रकार आत्मा को मुझ में नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
मन्मना भव,
तरंगायित कोशिका को भीतरी वज्रवत खूँटा से जकड़कर बांधना है. मद्भक्तो 24 घंटे के दिन-रात के आधे से ज्यादा समय ब्रह्म का किसी न किसी रूप से मनन-चिंतन करते भक्त बनना है. मद्याजी मां नमस्कुरु, ब्रह्म तुम्हारे भीतर इसे संज्ञान में लेते तथा उसके स्वरूप को हृदयस्थ करते हुए विभिन्न पदार्थों को सरल शांत और प्रेम शक्ति तरंग की निम्न आवृति एवं आयाम से उसे समर्पण करना उसकी पूजा करना है और वह सदैव सामने खड़ा है, इस अनूभूति से अपने आप को प्रतिष्ठित करते हुए कोशिका की सुदृढ़ हुई व्यवस्था से तीव्रता से होती शक्ति तरंगों को उसे समर्पण करना ही उसे प्रणाम करना है. यही विधि है, पूर्ण शांत शक्ति से युक्त होकर केन्द्रस्थ होना. यही है, आत्मा को उसमें नियुक्त कर उसके परायण होकर उसे प्राप्त करना है अत: (1) मन की उद्दिग्नता को शांत करना (2)अधिकांश समय में उसका ध्यान मानस पटल पर अंकित रख भक्त बनना (3) उसके रूप को हृदयस्थ कर फल-फूल आदि के समर्पण से पूजा करना और (4)वह सामने है इसे अन्तःमन से देखते हैं उसे प्रणाम करना, उससे परायण होना तथा उससे प्रतिध्वनि उत्पन्न करना ही परब्रह्म को प्राप्त करना होता है.
गंगा कहती है :
मुझ में मन रमाने वाला हो कर तुम(1)छोटे-छोटे बाँधों से बिजली 20 हजार मेगावाट से ज्यादा की आपूर्ति बिना किसी जलगुण लैंण्डस्लाइड, मृदा जमाव, कटाव मियैन्ड्रींग व बाढ़ आदि को एक साथ संरक्षित करते हुए कर सकते हो (2) आधुनिक तकनीक आधारित सिंचाई शक्ति और पेयजल आपूर्ति के समय और जगह से नियंत्रित जल निस्तारण पद्धति को संतुलंता से बदलते हुए उसके 2-3 गुणा बढ़ा सकते हो (3)उन्नतोदर बालू के बाढ़ क्षेत्र की विभिन्न शक्तियों के उपयोग से बाढ़ प्रदूषण कटाव के नियंत्रण आदि को संभव कर सकते हो तथा मेरी भक्ति तुम में आने से तुम बेसिन को जल संग्रहण क्षेत्र बनाकर मेरे भूजल भंडार के बढ़ने के उपरांत ही मालवाहक जहाज चलाने का निर्णय ले सकते हो. मेरी पूजा और मुझे प्रणाम कर मेरी शक्ति संरक्षण हेतु तकनीक संस्थान और 200 km. के अन्तराल पर अन्वेषण केन्द्र और हमारा वाचनालय कर मेरे विषय के ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना ही है यही है, तुम्हें मेरा परायण होना.