ज्ञानं कर्मं च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः । प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि ।। सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते । अविभक्तं विभक्तेषु तज्ग्यानं विद्धि सात्त्विकम् ।। गीता : 18.19-20 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
गुणों की संख्या करने वाले
शास्त्र में ज्ञान और कर्म तथा कर्ता गुणों के भेद से तीन-तीन प्रकार के कहे गये
है. उनको भी तू मुझसे भली-भांति सुन. जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक-पृथक सब भूतों में
एक अविनाशी परमात्मा को विभाग रहित समभाव से स्थित देखता है. उस ज्ञान को तो तू
सात्विक जान.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
एक परमात्मा विभाग रहित
समभाव में स्थित समस्त पदार्थों के एटम के केन्द्र में एक ही तरह के न्यूट्रॉन पाए
जाते हैं की व्याख्या करता है. इनकी संख्या अलग-अलग होती है पर न्यूट्रॉन के
आकार-प्रकार एक ही होते है. इसी तरह आत्मा को परिभाषित करने वाला, प्रोट्रान भी हरेक पदार्थों के एटम में एक ही तरह का होता. इस सूक्ष्म
दृष्टि से विभिन्न जीवों के शरीरस्थ एक ही आत्मा और परमात्मा को प्रोट्रान और
न्यूट्रॉन जैसा देखना ही है ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ समस्त जीव को एक
भाव से देखना, किसी के साथ राग-द्वेष से शक्ति का क्षय नहीं. यही है संसार को ‘ब्रह्ममय’ समझते आनंदानंद में रहना ही सात्विक ज्ञान.
(29) स्थित-प्रग्य
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पराकाष्ठा के त्यागी हैं?
गीता (5.29) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरा भक्त मुझ
को सब यज्ञ और तपों का भोगने वाला सम्पूर्ण लोगों के ईश्वरों का भी इश्वर तथा सम्पूर्ण
भूत-प्राणियों का स्वार्थ रहित दयालु और प्रेमी ऐसा तत्व से जान सब कुछ मुझे
समर्पित कर शांति को प्राप्त होता है. कवि कहता है कि नित्य-प्रति जगजननी माँ को
पत्र लिखने से मुझे अलौकिक मौन-संवाद की अनुभूति होती थी. आत्मा की सघन अनुभूतियों
के जरिए माँ से सीधा संवाद होता. तीस साल पुराने ऐसे ढेर सारे संवादों का चिट्ठा
है, जिसमें मेरे भाव विश्व की अनुभूति है. मैं डायरी के शक्ल में रोज के इन संवादों
को लिखने के कुछ दिन बाद उन्हें बारी-बारी से आग के हवाले कर देता. अग्नि की शरण
में जाने वाले ऐसे भाव पत्रों की संख्या शायद सैकड़ों मे हो. वर्षों तक जगजननी माँ
से संवाद के तौर पर लिखी ये कविताएं भी अग्नि की समिधा बन जाती, होम हो जाती अगर
सुरेश भाई इन्हें जबरन अपने पास न ले गये होते. आन्तरिक वेदना की अभिव्यक्ति माँ से करके उनको अग्नि में
स्वाहा कर देना, समर्पण को समर्पित करना, भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी
के पराकाष्ठा के त्यागी होने का प्रमाण है.
गंगा कहती है :
मुझसे या मुझमें सात्विक त्याग
रूप ज्ञान मेरे प्रवाह शक्ति को, मेरे मिट्टी-बालू की मौलिक गुण शक्ति को समझ कर
ही किए जाने की आवश्यकता है. यह त्याग मुझसे जल दोहन के रूप में करवाया जाए या
अवजल को मुझमें विसर्जित किया जाए. यदि मेरा जल दोहन हो तो, यह कहाँ से कितना और कैसे, उसी तरह यदि मुझ में मल-जल
विसर्जन या STP का निर्माण तो वह
कहाँ और कैसे? इन सब का तकनीकी ज्ञान ही
‘सात्विक ज्ञान’ हैं.