वेदानां सामवेदोअ्स्मि देवानामस्मि वासवः ।। इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ।। गीता : 10.22 ।।
श्लोक का हिंदी अर्थ :
मैं वेदों मे सामवेद हूँ, देवों में इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और भूतप्राणियों की चेतना अर्थात जीवन शक्ति हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
वेद, ईश्वरीय विभिन्न रूपों, स्त्रोतों, साक्षात्कारों से विभिन्न विषयों क्षेत्रों के प्राप्त पौराणिक संकलित पदार्थ से शक्ति और शक्ति से पदार्थ के रूपांतरित करने की तकनीकि सूत्र, मंत्र, यज्ञ, होम व हवन रूप से प्रतिष्ठाप्य ऋषियों, महर्षियों, योगियों व साधकों के त्याग रूप तपों से अर्जित संकलित व्यस्थित ज्ञान, ब्रह्म ज्ञान का भंडार ग्रंथ, वेद है और वह ‘वेद-सूत्र विज्ञान का समीकरण है. वेद ज्ञान के अथाह सागर का वह भाग जिसमें,
मंत्रों, सूत्रों व शक्ति की गोलियों को गायन, ध्वनि और शक्ति तरंगों के विभिन्न आवृतियो-आयामों के अन्तरालों से स्वयं को शांत करते, वातावरणीय उदिग्नता को शांत करते हुए ब्रह्म शांति प्राप्ति करने की तकनीक को निरूपित और प्रतिष्ठित करने वाला वेद ‘सामवेद’ है. इसे ही परब्रह्म कहते हैं कि ‘सामवेद’ मैं हूँ इसके गायन से उत्पन्न मृदुल ध्वनि तरंग से सामवेद ऋचाओं के ज्ञान के विज्ञान से अपने आप को स्थिरावस्था में लाते वातावरणीय कम्पन्न को शांति में रूपांतरित करते, पुनः केन्द्र में समाहित हो जाने को सामवेद का गायन कहते हैं. अत: सामवेद गायन की भावना मात्र से शरीर का कम्पन्न दूर होता है. गायन से वातावरण स्थिरावस्था में आता है. आत्म शक्ति में वृद्धि होती है और केन्द्र से संघनित तीक्ष्ण शक्ति तरंगों से वातावरण गहनता से संतुलित होती है इसलिये वेदों में परब्रह्म सामवेद हैं. विभिन्न देवताओ के अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों में शांति रूप, शक्ति प्रदायक संस्थापक का होना होता है. वह देवता जो समग्रता से शांति आधार के जड़ अन्न, जल व ताप को शांत करे वही होता है, यह करने वाला देवता, वर्षा का स्वामी, पृथ्वी और समस्त जीव सहित वातावरणीय संतुलनता का निर्वहन करने वाले देवता इन्द्र, परब्रह्मरूप हैं. इसी तरह विभिन्न इन्द्रियों के विभिन्न ज्वालाओं को विभिन्न रूपों से तरंगायित कर प्रतिपल संसार को नचाने वाली और विध्वन्श करने वाली, मन और संसार का निर्माण करने वाली और शांति प्रदान करने वाली भूत प्राणियों की चेतना जीवन शक्ति भी परब्रहम ही है.
गंगा कहती है :
निरंतर शक्ति सम्पन्न करने वाली माँ गंगा कहती है, ‘सामवेद’ जटिल मृदुल अन्तस्थल को आधार से अलंकृत कर बिलकुल नवीन तरंग से मानस पटल के सम्पूर्ण अन्तरंग विचारों को रूपांतरित करने वाली, शांति सागर में डुबोने वाली अपनी आदि के परब्रह्म की मौलिक-तरंग है. यही है, मेरी ‘कल्लोलिनी चारूगंगा’ ‘सामवेद’ का गायन, ‘आल्फा-बीटा-गामा-रे’ जैसा विध्वंशकारी नहीं अपितु इसका उल्टा निर्माणकारी है. यह करके देखो बनारस के दशाश्वमेध घाट पर कम से कम पाँच ‘सामवेद’ के पाठ करने वालों से मेरे जल गुण में आमूल परिवर्तन आयेगा. अतः ‘सामवेद’ का गायन शक्ति तरंगों को मेरे भीतर के आणविक संरचना को मौलिकता से रूपांतरित करता है. यही कारण है, कि मैं ब्रह्माणी, ब्रह्म जैसा सामवेद स्वरूपी हूँ. देवों में मैं, अपने जीवन आधार जल के देवता इन्द्र के स्वरूप धारी हूँ. मेरे जीवंत शरीर में कम्पन्नावस्था में मेरे बेसिन नतोदर और उन्नोदर के फ्लड प्लेन्स, बैंक्स, बेड आदि थरथराते इन्द्रियों में उन्नत्तोदर फ्लडप्लेन का बालूक्षेत्र ‘मनरूपी इन्द्र’ हूँ. मेरे समस्त स्वरूप में निरंतरता से होते रहते रूपांतरण का यही कारण है और भूत प्राणियों की चेतना जैसी मेरे नत्तोदर फ्लडप्लेन है. जहाँ शहर व गांव बसा करते हैं.