The Ganges
  • होम
  • जानें
  • रिसर्च
  • गैलरी
  • संपर्क

गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मैं सभी प्राणियों की मुक्ति का मार्ग हूँ . अध्याय 18, श्लोक 40 (गीता : 40)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • June-07-2019

    न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः । सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिः स्यात्त्रिभिर्गुणैः ।। गीता : 18.40 ।।

    श्लोक का हिन्दी अर्थ :

    पृथ्वी में या आकाश में अथवा देवताओं में तथा इनके सिवा और कहीं भी ऐसा कोई भी सत्व नहीं है जो प्रकृति से उत्पन्न इन तीनों गुणों से रहित हो.

    श्लोक की वैज्ञानिकता :

    शरीर की ई.सी.जी शरीर के कम्पन की ऊँची, मध्यम और निम्न तरंग आयामों को नीचे, मध्य व उच्च रक्तचापों को हृदयाघातों को परिलक्षित करता है. ई.सी.जी का यह रूप ब्रह्मांड के समस्त पदार्थों में हैं. अर्थात् ब्रह्मांड की हर वस्तुएं बदलते विभिन्न आयामों से काँप रहे हैं. यही है ब्रह्माण्ड की हर वस्तु को प्रकृति के अधीन होना. यही है ब्रह्म की चक्की का अनवरत विभिन्न रूप से सबको घसीटते चलना.

    (47) भारत का गीता-गंगा विज्ञान

    राष्ट्र-भाषा-हिन्दी ही क्यों ?

    (गीता 18.36-37) में भगवान श्रीकृष्ण कहते है – सात्विक सुख आरंभ में कष्टकारी प्रतीत होता है पर उसका फल आनंददायक होता है. ठीक इसी तरह भारत की राष्ट्रभाषा भारत माँ की भाषा, 130 करोड़ में से अधिकांश की भाषा, गंगा की भाषा, भगवान राम और कृष्ण की भाषा, महान साधु-संत की भाषा, भाषा-समृद्धि की भाषा आदि आधारभूत आधार पर आधारित रहते देश के समस्त प्रान्तों के विभिन्न भाषा-भाषियों उनके सभ्यता और संस्कृति आधारित रहन-सहन को राष्ट्र की बहुसांस्कृतिक धाराओं को एक प्रबल-प्रवाह की अपनी राष्ट्रवादी धारा में समायोजित रखने की नितांत आवश्यकता है. यही होगी भारत के अखंडता की आधारशिला. यही है ‘हिन्दी को राष्ट्रभाषा’ के रूप में स्वीकार करना. राष्ट्र को इस नीति से विरत होना, गीता और गंगा के सात्विकी पथ को त्याग कर स्वार्थ सिद्धि के लिए राजसी पथ अपनाना दुर्भाग्यपूर्ण होगा.

     गंगा कहती है :

    भगवान श्रीकृष्ण तुम्हें मुक्ति का पाठ पढ़ाते हैं और मैं तुम्हें मुक्ति देने आयी हूँ. अतः मैं ही गीता का मूर्ति रूप हूँ. मेरी वेदना सुनों - ब्रह्माण्ड के देवताओं-मानवों सहित हरेक कण सात्विक, राजस व तमस तीनों सुखों से अपने-अपने थड़थड़ाने का आयाम निरंतरता से बदलते हुए अन्त को प्राप्त होते हैं. अतः मुझे भी तो जाना ही है पर इतनी गति से ?  भयावह दोहन कर अपने लिए सात्विकी से राजसी सुख लिया और शोषण कर राजसी से तामसी सुख लिया और दुःख काटते कभी परिणाम को नहीं देखा. इतनी जल्दी में इतनी बड़ी जड़ता मानव को ?  मुझे कुछ दिन और रहने दो, भारत मुझे बहुत अच्छा लगता है.

क्या यह आपके लिए प्रासंगिक है? मेसेज छोड़ें.

Related Tags

River conservation(0) River Pollution in India(0) Ganga and geeta(4) Ganga pollution(115)

More

गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मैं सभी प्राणियों की मुक्ति का मार्ग हूँ . अध्याय 18, श्लोक 40 (गीता : 40)

गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मैं सभी प्राणियों की मुक्ति का मार्ग हूँ . अध्याय 18, श्लोक 40 (गीता : 40)

न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः । सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिः स्यात्त्रिभिर्गुणैः ।। गीता : 18.40 ।।श्लोक का हिन्दी अर्थ :पृथ...
गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मेरे मैले स्वरुप का कारण मनुष्य का स्वार्थ है. अध्याय 18, श्लोक 35 (गीता : 35)

गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मेरे मैले स्वरुप का कारण मनुष्य का स्वार्थ है. अध्याय 18, श्लोक 35 (गीता : 35)

यथा स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च । न विमुच्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी ।। गीता : 18.35 ।।श्लोक का हिन्दी अर्थ :हे पार्थ ! दुष्ट बुद...
गंगा नदी – आठ राज्यों में पीने एवं स्नान योग्य नहीं रह गया है गंगा का जल (सीपीसीबी रिपोर्ट)

गंगा नदी – आठ राज्यों में पीने एवं स्नान योग्य नहीं रह गया है गंगा का जल (सीपीसीबी रिपोर्ट)

गंगा नदी में बढ़ते प्रदूषण को लेकर एनजीटी के कड़े रूख के बाद अब सीपीसीबी (केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड) भी इसको लेकर सक्रिय है. नदी में प...
गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मैं मनुष्य के जीवन की मुक्ति का आधार हूं. अध्याय 18, श्लोक 34 (गीता : 34)

गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मैं मनुष्य के जीवन की मुक्ति का आधार हूं. अध्याय 18, श्लोक 34 (गीता : 34)

यया तू धर्मकामार्थान्धृत्या धारयतेर्जुन । प्रसंगेन फलाकांक्षी धृतिः सा पार्थ राजसी ।। गीता : 18.34 श्लोक का हिन्दी अर्थ :परन्तु हे पृथापुत्र...
गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मेरी निर्मलता का आधार मेरी अविरलता है. अध्याय 18, श्लोक 33 (गीता : 33)

गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मेरी निर्मलता का आधार मेरी अविरलता है. अध्याय 18, श्लोक 33 (गीता : 33)

धृत्या यया धारयते मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः।योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी ।। गीता : 18.33 ।।श्लोक का हिन्दी अर्थ :हे पार्थ ! ज...
गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – एसटीपी को बालू क्षेत्र में विस्थापित नहीं करना तामसी ज्ञान है. अध्याय 18, श्लोक 32 (गीता : 32)

गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – एसटीपी को बालू क्षेत्र में विस्थापित नहीं करना तामसी ज्ञान है. अध्याय 18, श्लोक 32 (गीता : 32)

अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता । सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ।। गीता : 18.32 ।।श्लोक का हिन्दी अर्थ :हे अर्जुन ! जो तम...
गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मनुष्य ने मुझे मात्र उपभोग का साधन समझा हुआ है. अध्याय 18, श्लोक 31 (गीता : 31)

गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मनुष्य ने मुझे मात्र उपभोग का साधन समझा हुआ है. अध्याय 18, श्लोक 31 (गीता : 31)

यथा धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च ।अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ।। गीता : 18.31 ।।श्लोक का हिन्दी अर्थ :हे पार्थ ! मनुष्य जिस ...
वर्ष 2016 से बेहद घट चुकी है गंगा के पानी की गुणवत्ता – संकट मोचन फाउंडेशन रिपोर्ट

वर्ष 2016 से बेहद घट चुकी है गंगा के पानी की गुणवत्ता – संकट मोचन फाउंडेशन रिपोर्ट

विगत तीन वर्षों में वाराणसी के अंतर्गत गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता बेहद खराब हो चुकी है. वाराणसी स्थित एक गैर-सरकारी संस्था संकट मोचन फाउंड...
गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – नदी तकनीक को समझे बिना, नदी संरक्षण व्यर्थ है. अध्याय 18, श्लोक 28 (गीता : 28)

गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – नदी तकनीक को समझे बिना, नदी संरक्षण व्यर्थ है. अध्याय 18, श्लोक 28 (गीता : 28)

अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोअ्लसः । विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते ।। गीता : 18.28 ।।श्लोक का हिन्दी अर्थ :जो कर्ता आयुक्...

गंगा नदी से जुड़ी समग्र नवीनतम जानकारियां

©पानी की कहानी Creative Commons License
All the Content is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
Terms | Privacy